हिंदू धर्म में यह नरसिम्हा जयंती का दिवस बहुत ही विशेष माना गया है। अग्नि पुराण में भी इस कथा का वर्णन पढ़ने में आता है। जिसमें भगवान श्री विष्णु ने नृसिंह रूप में अपने चैथा अवतार लिया था। अपने परम भक्त की रक्षा के लिए श्री हरि ने इस अवतार के रूप में प्रकट हुए थे। इसी वजह से यह दिन नरसिम्हा जयंती के रूप में पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार नरसिम्हा जयंती को प्रत्येक वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। वर्तमान समय में प्रयोग किए जाने वाले कैलेंडर के अनुसार यह अप्रैल या मई का महीना होता है। प्रत्येक वर्ष इस त्योहार को इसी समय में मनाया जाता है।
इस साल 2023 में नरसिम्हा जयंती 4 मई 2023 को यानि गुरुवार को मनाई जाएगी।
इस दिन चतुर्थी तिथि की शुरुआत 3 मई 2023 की रात को 11 :50 बजे होगी और चतुर्थी की तिथि की समाप्ति 4 मई 2023 की रात को 11 :23 बजे होगी।
नरसिम्हा जयंती की व्रत कथा का वर्णन कुछ इस प्रकार से है। प्राचीन समय में कश्यप नाम का एक राजा था, जिसकी पत्नी का नाम दिति था। इस राजा के दो पुत्र थे। जिसमें एक नाम हिरण्यकश्यप और दूसरे पुत्र का नाम हरिण्याक्ष था। हरिण्याक्ष के बुरे कर्मों और अत्याचार से लोगों को मुक्त करने के लिए भगवान श्री विष्णु जी ने इसका वध कर दिया था। तभी से हिरण्यकश्यप श्री हरि को अपना शत्रु मानने लगा। अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए अमरता की कामना से हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या करने का मन में संकल्प लिया।
अपनी कठोर तपस्या से भगवान ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर दिया। ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर हिरण्यकश्यप को दर्शन दिए और वर मांगने के लिए कहा। तभी उसने अमरता का वरदान मांगा। इस वरदान को ब्रह्मा जी देने में सक्षम नहीं थे। तो उन्होंने कोई अन्य वर मांगने के लिए कहा। तब हिरण्यकश्यप ने एक विशेष वर मांगा, जिस पर ब्रह्मा जी तथास्तु कहकर चले गए।
इस वरदान की प्राप्ति के उपरांत हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर सोचने लगा और अपनी प्रजा को श्री हरि की पूजा करने से रोकने लग गया। उसका पुत्र हुआ जिसका नाम प्रहलाद था। प्रहलाद श्री हरि का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को उसकी भक्ति के कारण कई बार मारने का प्रयास किया। लेकिन उसमें वह असफल रहा। इन प्रयासों में उसकी बहन होलिका भी आग में जलकर भस्म हो गई।
अंत में जब क्रोध में आकर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को श्री हरि का अस्तित्व सिद्ध करने की चुनौती दी। तो प्रहलाद ने कहा कि वह जगह हैं। तो स्तंभ की ओर इशारा कह कर राजा ने कहा, कि इस स्तंभ में भी तुम्हारे हरि हैं। तो प्रहलाद ने कहा, जी पिता जी। जब राजा ने उस स्तंभ को तोड़ दिया। उस समय भगवान नरसिम्हा अवतार में उस स्तंभ से प्रकट हुए। उसके बाद ब्रह्मा जी के वरदान को ध्यान में रखते हुए नरसिम्हा अवतार ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। इस दिन के बाद ही इस तिथि को नरसिम्हा जयंती के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन भक्त पूरे अनुष्ठानों का पालन करके पूरे विधि विधान से पूजा करते हैं। जिसके लिए कई जातक पंडित व ज्योतिष शास्त्र के विद्वान की सहायता से वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ पूजा को करते हैं। इस दिन की पूजा विधि कुछ इस प्रकार से होती है।
भारत के कई स्थानों में नरसिम्हा जयंती को नरसिंह प्रकट दिवस के नाम भी जाना जाता है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानकर मनाया जाता है। इस दिन को नरसिंह जी के उपासकों द्वारा पूजा और व्रत करके मनाया जाता है। इस दिन की गई आराधना और पूजन से समृद्धि, साहस और सफलता की प्राप्ति होती है।
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