जानिए यशोदा जयंती क्यों और किस समय मनाई जाती है और इस पर्व का क्या महत्व है?
यशोदा जयंती – भगवान श्री कृष्ण की माता का नाम यशोदा जी था, इन्होंने ही श्री कृष्ण जी का लालन पालन कर सगी मां की तरह उनसे प्रेम किया था। लेकिन भगवान श्री विष्णु जी के आठवें अवतार ने श्री कृष्ण के रूप में माता देवकी की कोख से जन्म लिया था। इस दिन माता यशोदा जी और श्री कृष्ण जी की पूजा की जाती है। संतान प्राप्ति के लिए इस दिन की गई पूजा बहुत विशेष मानी जाती है। माना जाता इस दिन यदि पूरे विधि विधान का पालन कर माता यशोदा और श्री कृष्ण का पूजन किया जाए तो श्री कृष्ण के बाल रूप की छवि वाली संतान जन्म लेती है।
यशोदा जयंती को क्यों और कब मनाया जाता है
हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष के समय षष्ठी की तिथि को यशोदा जयंती के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि माता यशोदा का जन्म ब्रज गांव में हुआ था और माता यशोदा के जन्मदिन के रूप में यह पर्व मनाया जाता है।
वहीं पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में माता यशोदा ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। जिससे खुश होकर श्री विष्णु जी ने माता यशोदा को दर्शन दिए थे और वर मांगने को कहा था। तब माता यशोदा ने भगवान को अपने घर आने के लिए कहा था। जिसके फलस्वरूप श्री कृष्ण के रूप में देवकी द्वारा जन्म लेकर भगवान माता यशोदा के घर गए थे। जिसके बाद माता यशोदा ने अपना पालन पोषण किया था। इसलिए इसके जन्म के शुभ अवसर को यशोदा जयंती के रूप में मनाया जाने लगा।
हिंदू धर्म में यशोदा जयंती का महत्व
इस दिन का बहुत महत्व है, इस दिन माता यशोदा की गोद में बैठे हुए बाल रूप कृष्ण की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जो भी यशोदा जयंती को पूरी आस्था से मनाता और पूजा व आराधना करता है, वह कभी भी संतान सुख से वंचित नहीं रहता।
गोकुल में इस दिन बहुत बड़े स्तर पर इस उत्सव को मनाया जाता है क्योंकि श्री कृष्ण ने इसी स्थान पर माता यशोदा के साथ अपना बचपन व्यतीत कर अपनी लीला का प्रदर्शन किया था। एक मान्यता के अनुसार यशोदा जयंती पर व्रत रखकर 14 बच्चों को भोजन कराने से बहुत शीघ्र ही संतान की प्राप्ति होती है। यशोदा जयंती के दिन किए गए पूजन से प्रत्येक मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
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