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संतोषी माता का व्रत | जानियें व्रत कथा, महत्व और व्रत पूजा विधि | Santoshi Mata Ka Vrat
September 27, 2021

संतोषी माता का व्रत | जानियें व्रत कथा, महत्व और व्रत पूजा विधि | Santoshi Mata Ka Vrat

जानियें संतोषी माता का व्रत, कैसे हुआ माता का जन्म, संतोषी माँ की व्रत कथा,  शुक्रवार व्रत पूजा विधि और संतोषी माता का व्रत क्यों करते है

संतोषी माता का व्रत- संतोषी माता, अर्थात् संतोष की माता। मां संतोषी प्रेम, संतोष, क्षमा, खुशी और आशा का प्रतीक है। उनके नाम अर्थ अनुसार संतोषी माता को सभी इच्छाओं को पूरा करके संतोष प्रदान करने वाली देवी माँ के रूप में जाना जाता हैं। संतोष माता विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की बेटी हैं, जो सभी दुखों, परेशानियों और भक्तों के दुर्भाग्य को दूर करती हैं । माँता की पूजा-अर्चना ज्यादातर उत्तरी भारत की महिलाओं द्वारा अधिक की जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि लगातार 16 शुक्रवारों के लिए उपवास और प्रार्थना करने से किसी के परिवार में शांति और समृद्धि आती है। संतोषी माँ एक व्यक्ति को पारिवारिक मूल्यों को संजोने और एक के संकल्प के साथ संकट से बाहर आने के लिए प्रेरित करती है।

हमेशा कमल संतोषी माता के फूल पर विराजमान रहती है जो इस बात को दर्शाता है की भले ही यह संसार बुरे, भ्रष्टाचार, हिंसावादी और कठोर लोगो से भरा हो, लेकिन माँ संतोसी अपने भक्तजनो के लिए हमेशा अपने शांत और सौम्य रूप में विराजमान रहती हैं। माता संतोषी क्षीर सागर में कमल के फूल पर वास करती हैं, जो उनके निर्मल स्वरुप का प्रतीक कराता हैं और जिन लोगों के दिल में कोई पाखंड नहीं है और उनकी माँ के प्रति सच्ची श्रद्धा है, माँ संतोषी वहाँ निवास करती हैं और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।  माँ संतोषी को नव दुर्गा माँ में सबसे शांत, निर्मल स्वाभाव और विशुद्ध रुपों में से एक माना जाता हैं।

माँ संतोषी के जन्म की कथा

ऐसा कहा जाता है कि एक बार भगवान श्री गणेश अपनी बहन के साथ रक्षाबंधन का त्योहार मना रहे थे, यह देख उनके पुत्रों यानि शुभ और लाभ का मन हताश हो गया और उदास होके बैठ गए यह देख उनकी माताओ ने उनसे पूछा की यह उदासी के पीछे का कारण क्या है तब उन्होंने कहा हमे भी यह त्योहार मनाना है परन्तु हमारी कोई बहन नहीं है, यह कहने के बाद वह अपने पिता से एक बहन की मांग करने लगे। भगवान श्री गणेश ने मांग से इंकार कर दिया परन्तु उनके अत्यधिक प्रयास, उनकी बहन, पत्नियों रिद्धि और सिद्धि के कहने पर उन्होंने एक दिव्य शक्ति को प्रकट किया जो फिर एक सुन्दर सी कन्या के रूप में परिवर्तित हो गयी। जिसका नाम उन्होंने संतोषी रखा और इस तरह संतोषी माता का जन्म हुआ।

माँ संतोषी हमे केवल निर्मलता और शांति ही प्रदान नहीं करती, बल्कि अपने सभी भक्तों की बुरी बलाओं से रक्षा भी करती हैं । माता के बाएं हाथ में तलवार और दायें हाथ में जो त्रिशूल हैं, जो इस बात का प्रतीक हैं कि माता के भक्त उनके सरन में हैं और ऐसी मान्यता हैं कि माता के चार हाथ हैं। अपने भक्तो के लिए तो उनके दो ही हाथ प्रकट रूप में हैं, परन्तु अन्य दो हाथ उन बुरी शक्तियों के लिए हैं, जो सच्चाई और अच्छाई के रास्ते में रूकावट उत्पन्न करते हैं। माँ संतोषी का रूप बहुत ही शांत, सौम्य और सुन्दर हैं, जो भक्तों को मन्त्र मुग्ध कर देता हैं।

संतोषी माँ की व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है कि एक गाँव में एक बूढी माँ के सात पुत्र थे। उनमें से 6 कमाते थे और एक बेकार और आलसी था। बुढि़या अपने 6 पुत्रो को प्यार से ताजा खाना खिलाती और सातवें पुत्र को बाद में उनकी थाली से बचा हुआ भोजन इकट्ठा कर फिर उससे खिलाया करती। जब सातवे पुत्र को इस बात की भनक हुई तो उसने यह घर छोड़ शहर जाने का निर्णय लिया । फिर अपनी पत्नी को अंगूठी निशानी के तौर पर देके वह चल पड़ा। शहर पहुंचते ही उसे एक सेठ की दुकान पर काम मिल गया और जल्दी ही उसने मेहनत से अपनी जगह बना ली।

इधर, पति के घर से चले जाने पर सास-ससुर उसकी पत्नी पर अत्याचार करने लगे। उसे घर का पूरा काम करवाते साथ ही जंगल से लकड़ियां लाने भेजते और भूसे की रोटी तथा नारियल के खोल में पानी देते। इस तरह अपार कष्ट में उसकी पत्नी के दिन कट रहे थे।

संतोषी माता की महिमा

एक दिन जब वह जंगल से लकडि़यां ला रही थी तो रास्ते में उसने कुछ महिलाओं को संतोषी माता की पूजा करते देखा और फिर उसने जाके माता की पूजा विधि के बारे में पूछा । महिलाओं के कहने अनुसार उसकी पत्नी ने बाजार जाके कुछ लकडि़यां बेच दीं और उन पैसो से माँ की पूजा सामग्री ले आई। माता के मंदिर में जाकर 16 शुक्रवार का व्रत रखने का संकल्प लिया। और विधि पूर्वक संतोषी माता का व्रत रकने लगी। दो शुक्रवार व्रत रखने के पश्चात ही उसके पति का पता और पैसे दोनों आ गए। फिर उसकी पत्नी ने संतोषी मंदिर जाकर माता से उसके पति को वापस लाने की दुआए की ।

उसकी भक्ती से माँ प्रसन्न हो गयी और उसको आशीर्वाद दे माता उस के पति के स्वप्न में जा दर्शन दिए और उसकी पत्नी का दुखड़ा सुनाया। इसके साथ ही उसके काम को पूरा कर घर जाने का संकल्प कराया। माता के चमत्कार से दूसरे दिन ही उसके पति का सब माल बिक गया और वह सबके लिए कुछ लेकर घर चल पड़ा। पति अपनी पत्नी को लेकर दूसरे घर में ठाठ से रहने लगा| इस प्रकार माता का 16 शुक्रवार का व्रत रख उसने माता का आशीर्वाद तथा अपनी सभी मनोकामनाएं पूरी की।

संतोषी माता का व्रत क्यों करते है – महत्व

माँ संतोषी विघ्नहर्ता गणेश की पुत्री हैं। यह संतोष का प्रतिनिधित्व करती हैं। यदि मनुष्य के जीवन में संतोष न हो तो सारा रुपया पैसा, धन, दौलत बेकार हो जाता है। संतोषी मां के व्रत रखने से सभी कष्ट दूर होते हैं। साथ ही मन में संतोष उत्पन्न होता है। यह व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है।

संतोषी माता व्रत विधि

इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर घर में गंगाजल का छिड़काव करें और उसे शुद्ध करें। घर की पूर्वोत्तर दिशा में, अनंत स्थान पर माँ संतोषी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें, पूजा सामग्री को एक बड़े पात्र में शुद्ध जल से भरें। पानी से भरे पात्र में गुड़ और चने से भरा एक और बर्तन रखें, माता की विधि-विधान से पूजा करें।

इसके बाद संतोषी माता की कथा सुनें, फिर आरती करें और सभी को गुड़ और चने का प्रसाद वितरित करें, अंत में घर में पानी से भरे पात्र से जल को छिड़कें और बचा हुआ जल तुलसी या किसी भी अन्य पौधे में डाल दे । इस तरह, 16 शुक्रवार का व्रत नियमित विधि पूर्वक रखे । अंतिम शुक्रवार को व्रत तोड़कर विसर्जन करें, उपरोक्त विधि से देवी संतोषी की पूजा करें, 8 कन्याओं को खीर-पूड़ी का भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा और केले का प्रसाद दे ।

संतोषी माता को आदि शक्ति नव दुर्गा का रूप भी माना जाता है और उनकी पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। अगर आप भी देवी
माँ  का व्रत रखते हैं या आप व्रत शुरू करने की योजना बना रहे हैं तो आपको कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए । संतोषी माता के व्रत पर यह सुनिश्चित करें कि आप कुछ खट्टा पदार्थ न खाएं । माता का प्रसाद यानि गुड़ और चने का सेवन खुद भी करना चाहिए, कोई खट्टी चीजें, अचार और खट्टे फल नहीं खाने चाहिए। यहां तक कि व्रत करने वाले परिवार के सदस्यों को उस दिन कुछ भी खट्टा नहीं खाना चाहिए।

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