Utpanna Ekadashi 2023 | उत्पन्ना एकादशी 2023 में कब है, पौराणिक कथा और इसका महत्व

आखिर क्यों है खास उत्पन्ना एकादशी, इसे कब मनाया जाता है, उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक कथा और इसका क्या महत्व है?

उत्पन्ना एकादशी – हिंदू  ग्रथों में एकादशी के दिवस को भगवान श्री विष्णु के कारण बहुत पवित्र माना गया है। वर्ष में आने वाले 24 से लेकर 26 एकादशी के उत्सव भगवान श्री हरि को बहुत प्रिय होते हैं। प्रत्येक माह में दो एकादशी के उत्सव आते हैं जिसमें एक शुक्ल और दूसरा पर्व कृष्ण पक्ष के चलते मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार अधिकमास व मलमास के आने पर एकादशियों की तिथियां बढ़ जाती है। प्रत्येक एकादशी की अपनी विशेष व्रत कथा होती है। एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है। 

एकादशी के शुभ अवसर पर अनंत फल प्राप्ति हेतु पूजा, पाठ और व्रत आदि को शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार सूर्योदय के आधार पर दिनों की गणना की जाती है। इसलिए अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से एकादशी तिथि की अवधि दो दिनों के बीच रहती है। एकादशी के दिन रखे गए व्रत को एकादशी के पारण मुहूर्त में खोलना चाहिए। पुराणों में इस मुहूर्त में खोला गया व्रत संपूर्ण माना गया है। इसलिए इन मुहूर्तों और कथाओं का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। तो आइए जानते हैं कि वर्ष 2021 में यह किस दिन आएगा और इसे कब मनाया जाता है।

 

उत्पन्ना एकादशी कब मनाई जाती है – Utpanna Ekadashi Kab Manai Jati Hai 

उत्पन्ना एकादशी वह पर्व है जिसे मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष आने वाले इस उत्सव पर नारायण जी का पूजन किया जाता है। भगवान श्री विष्णु को अलग अलग 108 प्रकार के नामों से जाना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह नवंबर या दिसंबर के समीप आती है।

 

वर्ष 2023 की उत्पन्ना एकादशी – Utpanna Ekadashi Kab Hai

इस साल 2023 में उतपन्ना एकादशी 8 दिसंबर 2023 को यानि शुक्रवार को मनाई जाएगी 

शुभ मुहूर्त 1 : 15 pm से शुरू होकर 3 : 19 pm तक रहेगा 

इसकी समय अवधि 2 घंटे 4 मिनट तक रहेगी

उत्पन्ना एकादशी की पूजन विधि – Utpanna Ekadashi Ki Pujan Vidhi 

  1. उत्पन्ना एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को एक दिन पूर्व यानि दशमी की रात  में भोजन बिलकुल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।
  2. उत्पन्ना एकादशी के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत होने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भगवान श्री विष्णु की पुजा-अर्चना करनी चाहिए और उन्हें पुष्प,जल,धूप,दीप आदि अर्पित करना चाहिए।
  3. इस दिन भगवान् श्री विष्णु के केवल फलों का ही भोग लगाना चाहिए और समय-समय पर भगवान श्री विष्णु का सुमिरन करना चाहिए। रात्रि में पूजा-अर्चना  के बाद जागरण करना चाहिए। 
  4. उत्पना एकादशी के अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करना चाहिए। किसी जरुरतमंद निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दान-दक्षिणा देना चाहिए। इसके बाद स्वयं को भोजन ग्रहण करके व्रत पारण चाहिए।

 

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा – Utpanna Ekadashi Vrat Katha

इस कथा के अनुसार सतयुग काल में एक मुर नाम का दैत्य था, जोकि बहुत बलशाली और अत्याचारी था। इस राक्षस ने सभी देवताओं को पराजित करके देवलोक से भगा दिया था। जिसके कारण देवता बहुत दुखी थे और शरण के लिए कोई स्थान न होने पर मृत्यु लोक में भटक रहे थे। भगवान शिव द्वारा आदेश दिए जाने पर सभी देवता क्षीरसागर में भगवान श्री विष्णु से सहायता मांगने के लिए गए।

तभी भगवान श्री विष्णु ने उस राक्षस का वध करने का निर्णय लिया और सभी देवताओं को चंद्रावती नगरी में जाने का आदेश दिया। सभी देवताओं ने जब उस नगरी की ओर प्रस्थान किया तो मुर दैत्य अपनी राक्षस सेना के साथ वहां प्रकट हो गया। उसको देखकर सभी देवता भयभीत होकर इधर-उधर भागने लग गए। तभी भगवान स्वयं रणभूमि पर आए और उस दैत्य से युद्ध करना आरंभ कर दिया।

इस युद्ध में मुर की सेना के कई दैत्य मारे गए और यह युद्ध पूरे 10 हजार वर्षाें तक चलता रहा। जिसमें मुर का शरीर बुरी तरह घायल हो गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी वह लड़ता ही रहा। जिसके बाद भगवान श्री विष्णु जी मुर दैत्य को घायल छोड़कर स्वयं विश्राम करने के लिए बद्रिकाश्रम की हेमवती नामक गुफा में चले गए। जब भगवान योगनिद्रा में सो रहे थे तब मुर उनका पीछा करते करते वहां पहुंच गया। जैसे ही उसने भगवान को मारने का प्रयास किया तभी एक प्रकाश उत्पन्न हुआ। जिससे एकादशी देवी प्रकट हुई और देवी ने उस दैत्य का वध कर दिया। इस दिन को तब से उत्पन्ना एकादशी के पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।

 

उत्पन्ना एकादशी का महत्व – Utpanna Ekadashi Ka Mahatva

हरि वासर के नाम जाने वाले इस एकादशी के पर्व का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। श्री हरि भगवान के उपासक इस दिन की बहुत उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं। इस दिन वैदिक कर्मकांड से पूजा करना बहुत फलदायी होता है। पितृ-तर्पण के लिए इस दिन के दोपहर का समय बहुत शुभ होता है। इस दिन किए गए पूजन से जातकों के पूर्वजों के सभी पापों का नाश हो जाता है और उनको स्वर्ग प्राप्त होता है। 

इस दिन पूजा के बाद भजन-कीर्तन करके प्रभु का गान गाया जाता है। उत्पन्ना एकादशी के अंत में क्षमा पूजा करना बहुत आवश्यक है क्योंकि मनुष्य कितने भी अनुष्ठानों का पूरा पालन करके पूजा को करे, फिर भी चंचल मन के कारण कही न कही गलती हो ही जाती है। पूजा के समय किसी अन्य वस्तु व कार्य के बारे में सोचने पर भी दोष लग जाता है। इसी कारण से अंत में क्षमा पूजा की जाती है। इस दिन सभी भक्त अपनी क्षमता के अनुसार दान देते हैं और ब्राह्मणों को भोजन के आमंत्रित करते हैं।

 

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