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Gangaur Ka Itihas | पढियें संक्षेप में गणगौर का इतिहास और गणगौर के बारे में
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Gangaur Ka Itihas | पढियें संक्षेप में गणगौर का इतिहास और गणगौर के बारे में
December 30, 2022

Gangaur Ka Itihas | पढियें संक्षेप में गणगौर का इतिहास और गणगौर के बारे में

आइए जानते हैं राजस्थान में मनाने वाले गणगौर के इतिहास को संक्षेप में

गणगौर राजस्थान में मनाए जाने वाला बहुत ही विशेष त्योहार है। हिंदू धर्म में चैत्र महीने में आने वाले शुक्ल पक्ष की तृतीया को यह पर्व मनाया जाता है। इसके पीछे की ऐतिहासिक कथा के आधार पर ही गणगौर को इस दिन मनाया जाता है। चलिये जानते है गणगौर का इतिहास

गणगौर का इतिहास – Gangaur Ka Itihas

गणगौर का इतिहास – गणगौर का इतिहास भगवान शिव जी और माता गौरी से जुड़ा हुआ है। राजस्थान में महादेव जी की ईसर रूप में पूजा की जाती है। प्राचीन समय की बात है जब नारद जी, भगवान शिव जी और देवी पार्वती जी के साथ भ्रमण के लिए निकले थे। चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन गांव में उनके आने की जानकारी मिलते श्रेष्ठ कुलीन स्त्रियां खुश होकर स्वादिष्ट भोजन बनाने और स्वागत की तैयारियों में लग गई। 

गणगौर का इतिहास   – भोजन बनाने में लीन श्रेष्ठ कुल की स्त्रियों से पूर्व ही साधारण कुल की महिलाएं पूजा की थाली लेकर प्रभु के पूजन के लिए पहुंच गई। माता पार्वती ने प्रसन्न होकर उन पर पूर्ण सुहाग रस का छिड़काव कर दिया। तत्पश्चात उच्च कुल की महिलाएं भोजन तैयार कर चुकी थी। उन्होंने स्वागत के आधार पर रत्न, सोना और चांदी के साथ पूजन करना आरंभ कर दिया। उन स्त्रियों की आस्था को देखकर भगवान भोलेनाथ के मन में प्रश्न आया कि पार्वती जी ने तो संपूर्ण सुहाग रस का प्रयोग कर लिया है। तो इन भक्तों को वह क्या देंगी?

गणगौर का इतिहास – अपने पति को सोच में पड़े देखकर माता पार्वती द्वारा पूछने के बाद उत्तर में कहा कि हे प्राणनाथ! आप चिंतित ना हो। मैंने उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थ से बना रस आर्शीवाद के रूप में दिया है। लेकिन इन स्त्रियों को मैं अपनी उंगली से निकले रक्त का कुछ अंश सुहाग रस के रूप में दूंगी। पूजन के बाद माता पार्वती जी ने अपने बोले हुए वचनों के अनुसार अपनी उंगली को चीरकर उन स्त्रियों पर सुहाग रस का छिड़काव किया। यह सुहाग रस जिस जिस सुहागन के भाग्य में पड़ा, वह तन और मन से सौभाग्यवती हो गई। सुहाग रस के छींटे के अनुसार सभी स्त्रियों को सुहाग की प्राप्ति हुई।

गणगौर का इतिहास – तत्पश्चात भगवान जी ने देवी पार्वती जी को तट पर स्नान करने की आज्ञा दी और स्वयं वहां से चले गए। माता पार्वती जी ने स्नान के पश्चात बालू से अपने प्राणनाथ की मूर्ति बनाकर पूजन किया। प्रदक्षिणा करके उन को भोग के रूप में बालू के दो कण अर्पित किए। इस पूजन में उनको काफी समय लग गया। जब वह लौटकर वापस पहुंची तो भोलेनाथ जी ने पूछा कि हे देवी आपको आने में इतना समय क्यों लग गया?

इसके उत्तर में माता पार्वती जी ने झूठ बोलते हुए कहा उनको रास्ते में मायके वाले मिल गए थे। लेकिन भगवान जी से कुछ छुप नहीं सकता है, पार्वती जी के ऐसे वचन सुनकर उन्होंने पुनः एक और प्रश्न किया। भगवान शिव बोले हे देवी! आपने वहां किस पदार्थ का भोग लगाकर 

उसे स्वयं ग्रहण किया था। तब पार्वती जी ने कहा दूध-भात। प्रभु दूध-भात को ग्रहण करने के उद्देश्य से तट की ओर प्रस्थान कर दिए। ऐसे में पार्वती मन प्रार्थना करने लग गई और अपने प्राणनाथ के पीछे पीछे चल दी। 

गणगौर का इतिहास – तभी उन्हें तट पर एक माया महल दिखाई दिया। जहां पर भगवान शिव जी की साले और सलहज आदि द्वारा सेवा की गई। वापस आते समय भगवान शिव ने कहा कि मेरी माला वहीं छूट गई है। तब देवी पार्वती ने कहा आप विश्राम कीजिए मै आपकी माला लेकर आती हूं। उस समय महादेव जी ने देवी पार्वती को माला लाने की अनुमति नहीं दी। भगवान भोलेनाथ जी ने नारद जी को माला लाने को कहा।

जब नारद जी माला लाने के लिए उस तट पर पहुंचे तो उन्होंने चारो ओर घना जंगल पाया और उस जंगल में उनको वह माला बिजली पड़ने से उत्पन्न हुए प्रकाश से दिखाई दी। नारद जी ने वापिस लौटकर सारा वृतांत देवी पार्वती और शिव जी को बताया। तो शिव ने प्रसन्ना से उत्तर दिया कि यह देवी की लीला है। तब देवी ने कहा कि हे नारद मैं किस योग्य हूं। तब नारद जी ने माता पार्वती को प्रणाम करते हुए कहा, हे माता! आप सभी पतिव्रताओं में सबसे श्रेष्ठ हैं। इसलिए जो स्त्री इस दिन पति के किए गए पूजन को गुप्त रखती है। उनके पति को भोले शंकर जी की कृपा से दीर्घायु की प्राप्ति होती है।

 

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