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action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in C:\inetpub\vhosts\astroupdate.com\httpdocs\wp-includes\functions.php on line 6114गोस्वामी तुलसीदास जी को कौन नहीं जानता। “रामचरितमानस” जैसे महाकाव्य की रचना करने वाले तुलसीदास आज संपूर्ण हिंदू धर्म में पूजनीय स्थान रखते हैं। तुलसीदास जी का जन्म संवत 1589 में उत्तर प्रदेश के वर्तमान बांदा जनपद के राजापुर नामक गांव में हुआ था। रामचरितमानस महाकाव्य के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। तुलसीदास जी एक महाकवि के रुप में धरती पर अवर्तीण हुए। हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अधिकतर विद्वान लोग तुलसीदास जी का जन्म उत्सव मनाते हैं। इस वर्ष तुलसीदास जयंती गुरुवार 23 अगस्त 2023 को मनाई जाएगी।
तुलसीदास जी अपने सांसारिक जीवन से विरक्त संत थे। उनकी रचनाओं पर भगवान श्री राम की विशेष कृपा रही है। भगवान राम से भेंट करवाने में गोस्वामी तुलसीदास जी सबसे बड़ा श्रय वीर हनुमान जी को देते हैं। हनुमान जी की कृपा से ही तुलसीदास जी भगवान श्रीराम से भेंट कर सके थे।
आइए जानते हैं तुलसीदास जी के जीवन से जुड़ी हुई रोचक तथ्य तथा तुलसीदास जयंती क्यों मनाई जाती है? और इसे मनाने के पीछे कथा क्या है? संपूर्ण जानकारी के लिए आप इस लेख को ध्यान पूर्वक पढ़ते रहिए।
तुलसीदास का जन्म सामान्य दुबे परिवार में हुआ। जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ था उनके मुख से राम नाम की ध्वनि निकली। कुछ दिनों बाद अपनी माता को तुलसीदास जी ने खो दिया। पिता ने तुलसीदास जी को अभागा समझते हुए ऐसे ही छोड़ दिया। तुलसीदास जी अपने जीवन को संघर्षशील समझते हुए राम भक्ति में लीन होने लगे।
कुछ समय बात तुलसीदास जी की रत्नावली से शादी हो गई। तुलसीदास जी रत्नावली से बेहद प्रेम करते थे। परंतु रत्नावली एक धार्मिक स्त्री थी और उन्होंने तुलसीदास को अनेक रचनाएं रचने के लिए प्रेरित किया था। एक दिन रत्नावली अपने पीहर को चली गई तब तुलसीदास जी उसके साथ साथ चल दिए। रत्नावली को यह देख कर बड़ा दुख हुआ और तुलसीदास से कहा कि अगर आप इस हाडमांस वाले शरीर के क्यों प्रीती करते हो। यदि आप भगवान श्री राम के चरणों में ध्यान लगाते तो आप का बेडा पार हो जाता। यह शरीर तो नश्वर है यह आपकी शारीरिक इच्छा पूर्ति का सकता है, परंतु इसे आप भवसागर पार नहीं जा सकते। आपको भगवान श्री राम के चरणों में ध्यान लगाना चाहिए। इतना सुनने के बाद तुलसीदास जी क्षणभर भी वहां पर नहीं रुके और तुरंत वहां से चल दिए। तब से तुलसीदास जी महान कवि के रूप में उभर कर सामने आए।
तुलसीदास जी ने अपने जीवन काल में 16 रचनाएं रची है। जिनमें से मुख्य तौर पर ‘गीतावली’, ‘विनयपत्रिका’, ‘दोहावली’, ‘बरवै रामायण’, ‘हनुमान बाहुक’ यह सभी रचनाओ ने तुलसीदास जी को कविराज की उपाधि दे डाली। तुलसीदास जी का जीवन बदलने वाली रचना “रामचरितमानस” है। तुलसीदास जी ने महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा लिखी गई संस्कृत रामायण को सरल भाषा में लिखते हुए अवध भाषा में वर्णन किया। रामचरितमानस तुलसीदास जी की सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाली रचना थी। इसी रचना के बदौलत तुलसीदास जी महान कवियों में शामिल हो गए।
तुलसीदास जी का जन्म श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था। इसी जन्म दिवस को विद्वान जन तुलसीदास जयंती के रूप में मनाते हैं। गोस्वामी तुलसीदास अपनी रचनाओं के चलते वेद ऋषि यों को और विद्वान संतो को उपदेश देते हैं। तुलसीदास जी अपने जीवन में राम भक्ति के अलावा किसी अन्य को स्थान नहीं दिया। तुलसीदास जी की जयंती का महत्व मानने वाले संत तुलसीदास जी के चरण पखारते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। तुलसीदास जी का संपूर्ण जीवन राममय था। राम की व्याख्या लिखते समय तुलसीदास जी अति प्रसन्न हुआ करते थे और अपनी रचनाओं में स्वयं राम के शब्दों को अपनी भाषा में वर्णन किया करते थे। तुलसीदास जी एक महान कवि होने के साथ-साथ संत शिरोमणि थे। इसीलिए धर्म गुरुओं द्वारा और राम भक्तों द्वारा गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती मनाई जाती है। उन्हें याद कर पूजा अर्चना यग हवन तथा रामायण पाठ किए जाते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई वाल्मीकि रामायण जो की संस्कृत भाषा में थी उसे अवधी भाषा में अर्थात साल भाषा में रचित किया। तुलसीदास जी का जन्म त्रेता युग में ही हो गया था और इस समय आप जो तुलसीदास जी की जयंती मना रहे हैं। यह उनका पुनर्जन्म है।
दरअसल यह एक धार्मिक और बड़ी पौराणिक कथा है। सर्वप्रथम हनुमान जी ने रामायण रचना की थी। तब उन्होंने महर्षि वाल्मीकि को यह रामायण सुनाई थी। परंतु उस वक्त वाल्मीकि जी ने उस रामायण को अध्ययन कर रख दिया और कुछ समय बाद जब उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि यह रामचरितमानस हनुमान जी ने लिखी है। तब उन्होंने इसे संस्कृत भाषा में दोबारा से रचना की थी। तत्पश्चात संवत 1589 ईस्वी में महर्षि वाल्मीकि का दूसरा जन्म तुलसीदास के रूप में होता है। इनका जन्म से ही भगवान राम के प्रति अतिशय प्रेम था।
जब तुलसीदास जी त्रेता युग में भगवान श्रीराम से भेंट करना चाहते थे। उस समय हनुमान जी ने तुलसीदास जी की श्री राम से भेंट करवाई थी। तुलसीदास जी भोले थे और भगवान श्रीराम के दर्शनों हेतु हनुमान जी से गुहार लगा चुके थे। तब हनुमान जी ने उन्हें निर्मल मन वाला मानते हुए भगवान राम से भेंट करवाना स्वीकार किया। तब से तुलसीदास जी भगवान श्री राम के चरणों का ही गुणगान किया करते हैं। उन्होंने जो भी रचनाएं की है वह इसी संदर्भ में सुशोभित है। तुलसीदास जी की रचनाओं में रामचरितमानस सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला काव्य हैं।
तुलसीदास जी की अन्य रचनाओं में गीतावली’, ‘विनयपत्रिका’, ‘दोहावली’, ‘बरवै रामायण’, ‘हनुमान बाहुक’ यह सभी रामायण घटनाक्रम से जुड़ी हुई रचनाएं हैं। तुलसीदास जी ने अपने संपूर्ण जीवन काल में 16 पुस्तकों की रचना की है। तुलसीदास जी अपनी भाषा में ही अपनी रचनाओं को रचा करते थे। उस समय तुलसीदास जी अवध भाषा के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने अपने संपूर्ण रचनाओं को अवध भाषा में ही रचना की है।