जानें शनि प्रदोष के बारे में, आखिर किस समय यह उत्सव मनाया जाता है और क्यों इस दिन को मनाया जाता है, इससे जुड़ी हुई पौराणिक कथाएं और हिंदू धर्म में इसका क्या महत्व है?
भारत में हिंदू धर्म द्वारा शनि प्रदोष व्रत का बहुत विशेष माना गया है। इस दिन भगवान शिव के साथ साथ शनि देव का पूजन किया जाता है। इस दिन का एक उत्सव की भांति बहुत बड़े स्तर पर मनाया जाता है। इस दिन किए गए व्रत और पूजन से सभी कष्टों का नाश होता है। भारत के भिन्न-भिन्न राज्यों अलग-अलग मान्याओं के अनुसार इस दिन को मनाया जाता है। शनि देव की दृष्टि से ग्रसित जातक इस दिन का बहुत बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस दिन शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार इस दिन को शनि देव का जन्मदिन मानकर मनाया जाता है। इस दिन किए गए व्रत को पूरी विधि के अनुसार किया जाता है। भगवान शिव के उपासकों के द्वारा यह दिन को बहुत आस्था से मनाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में किए गए स्नान को बहुत शुभ माना गया है। इस दिन पूजा के स्थान के साथ-साथ पूरे घर की सफाई की जाती है। प्रदोष काल में की गई पूजा को उत्तम माना जाता है। इस दिन व्रत का संकल्प करके शाम के समय शनि देव और महादेव शिव की पूजा की जाती है।
शनि प्रदोष कब होता है? (Shani Pradosh Kab Hai)
शनि प्रदोष का यह उत्सव साल में दो बार मनाए जाने वाला पर्व है। यह दिन भगवान शिव और शनि देव के उपासकों के लिए बहुत विशेष रहता है। संध्याकाल के समय को प्रदोष काल कहा जाता है, इसलिए इस समय में शनि प्रदोष के उत्सव की पूजा की जाती है। माना जाता है इस दिन की गई पूजा से खोया हुआ धन भी प्राप्त हो जाता है।
प्रत्येक वर्ष माह में शुक्ल और कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी के दिन पर यह शनि प्रदोष का पर्व मनाया जाता है। इस प्रकार गणना के अनुसार साल में प्रदोष व्रत के 24 व्रत पड़ते हैं। अधिक मास के आने पर इन आने वाले दिन में थोड़ा उतार चढ़ाव आता रहता है। शनिवार और मंगलवार के दिन आए इस शनि प्रदोष के व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। महीने में आने वाले दिन को अलग-अलग क्षेत्र के अनुसार भिन्न-भिन्न नामों से इस पर्व को जाना जाता है और अपनी मान्यताओं के अनुसार इसे मनाया जाता है।
आखिर क्यों शनि प्रदोष के उत्सव को मनाया जाता है?
इस दिन को संतान प्राप्ति की कामना से मनाया जाता है। भगवान शिव के उपासक उनका आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए इस दिन को मनाते हैं। शनि दोष से पीड़ित जातक इस दिन की गई पूजा से इस दोष से मुक्ति पाने के लिए पूजा और यज्ञ का आयोजन करते हैं। इस दिन किए गए दान को बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन की गई आराधना से सभी रोगों और कष्टों से मनुष्य मुक्त होकर अपना जीवन व्यतीत करता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर भगवान की आराधना से दिन का शुभारंभ किया जाता है और पूरा दिन अनुष्ठानों का पालन करके शनि देव और देवों के देव महादेव की पूजा की जाती है। त्रयोदशी के इस दिन को भारत के अलग-अलग राज्यों में माने जानी वाली मान्ताओं के अनुसार अपने अपने रिति रिवाजों से मनाया जाता है।
शनि प्रदोष के दिन क्या करना चाहिए?
- इस दिन पीपल के वृक्ष को जल चढ़ाया जाता है और इस पेड़ को शनि देव का रूप मानकर पूजा जाता है।
- इस दिन इस वृक्ष के नीचे बैठ कर चालीसा के पाठ को किया जाता है और इस दिन इस पेड़ की छाया में की गई पूजा आराधना को बहुत शुभ माना जाता है।
- ओम नमः शिवाय के मंत्र का उच्चारण करते हुए पीपल के पेड़ का छूकर उसकी परीक्रमा करनी चाहिए, इससे शनि देव प्रसन्न होकर भक्तों को आर्शीवाद देते हैं।
- भगवान शिव को भांग के साथ-साथ विलपत्ती वृक्ष के पत्ते को चढ़ाया जाना बहुत फलदायी माना जाता है। लेकिन दिन भगवान शिव की प्रतिमा पर चढ़ाए गए पीपल के पत्ते को बहुत कल्याणकारी माना जाता है। वहीं राशिफल के परीणामों और नक्षत्रों के आधार पर बनी हुई स्थिती से जातकों के नौकरी और नए अवसरों को पाने मौका मिलेगा।
- इस दिन जूतों, उड़द दाल और सरसों के किए गए दान को बहुत शुभ माना जाता है।
शनि प्रदोष से जुड़ी पौराणिक कथाएं (Shani Pradosh Katha)
शनि प्रदोष के दिन शनिदेव और भगवान शिव की आराधना की जाती है, क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन को देव शनि और भगवान शंकर को समर्पित किया गया है। शनि प्रदोष से संबंधित कथा के अनुसार एक समय में किसी नगर के सेठ पूरी सुख सुविधाओं के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। सारी सुख सुविधाओं के होने के साथ भी वह काफी दुखी रहते थे, क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी। इसलिए वह अपने द्वारा कमाए गए धन से सुखी नहीं थे। संतान न होने से उनको अपना इकट्ठा किया हुआ धन व्यर्थ लगता था। इसलिए ऐसा समय आया जब सेठ जी ने अपनी संपत्ति अपने नौकरों को सौंप दी और स्वयं तीर्थ यात्रा के लिए निकल गए।
इस तीर्थ यात्रा के समय उनको एक साधु के दर्शन हुए जोकि अपनी साधना में लीन थे। सेठ जी ने उस ध्यानमग्न साधु के आशीर्वाद की कामना कर उनको प्रणाम किया और उनके समीप बैठ गए। सेठ के साथ उनकी पत्नी भी उनके साथ बैठ गई और मन यह निर्णय लिया की इस तपस्वी के आर्शीवाद के बाद ही वह अपनी आगे यात्रा शुरू करेंगे। जब साधु ने अपनी आंखें खोली तो दोनों को अपने समीप पाया और उनको इस बात का ज्ञान हो गया था कि वह काफी लंबे समय से उनके पास मात्र आशीर्वाद की लालसा में बैठे हुए हैं।
आस्था
उनकी यह आस्था देखकर वह तपस्वी प्रसन्न हुआ और कहा कि मैं जानता हूं कि आप किस दुख से पीड़ित हैं। तभी सेठ जी को आर्शीवाद देते हुए साधु ने उसे शनि प्रदोष व्रत करने की आज्ञा दी और कहा कि इस व्रत से तुम्हारे सभी दुखों का नाश हो जाएगा। इसी के साथ तुमको संतान सुख की प्राप्ति भी होगी। साधु ने पूरी विधि के बारे में सेठ जी को बताया। जिसमें बताया गया कि भगवान शिव की अराधना और पूजा का पूरा विधि विधान बताया। इसके बाद सेठ और सेठानी ने अपनी तीर्थ यात्रा को जारी किया। इस तीर्थ यात्रा के बाद सेठ और सेठानी ने तपस्वी द्वारा बताए गए व्रत का पूरे अनिष्ठानों का पालन करते हुए किया। जिससे उनको शीघ्र ही संतान की प्राप्ति हुई। इस व्रत के बाद उनके जीवन में खुशियों की लहर आ गई।
शनि प्रदोष का क्या महत्व है? (Shani Pradosh Ka Mahatva)
इस दिन का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है और पूरे भारत में इसे बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन की गई पूजा से आरोग्य और सुखी जीवन की प्राप्ति होती है। इस दिन को यदि पूरी आस्था और श्रद्धा से किया जाए तो होने वाली दुर्घटनाओं से भगवान शिव और शनि भक्तों की रक्षा करते हैं। माना जाता है कि शनि प्रदोष के दिन यदि सोमवार और शनिवार का दिन हो तो इस दिन की महत्वता और भी ज्यादा बढ़ जाती है। सोमवार का दिन भगवान का दिन माना जाता है इसलिए इसदिन की गई पूजा से भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं। इसी प्रकार शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित होता है।
इस दिन के व्रत को एकादशी के व्रत के समान ही पवित्र माना गया है। इस दिन को सभी दोषों से मुक्ति प्रदान करने वाला माना गया है। संतान सुख से वंचित भक्तों के लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन गंगा स्नान को बहुत पवित्र माना गया है। लेकिन किसी कारणवश यदि आप इस तीर्थ स्थल पर जाने में सक्षम नहीं हैं तो आप अपको अपने नहाने के पानी में गंगा जल को मिला लेना चाहिए। इस जल द्वारा किए गए स्नान से पुण्य की प्राप्ति होती है और गंगा स्नान के समान फल की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्योदय के समय में प्रदोष पूजा को किया जाता है। जिससे सामान्य दिनों की अपेक्षा कई गुना फल प्राप्त होता है। इससे शनि के साढ़ेसाती के दुष्परिणाम समाप्त हो जाते हैं। इस दिन को पूरी आस्था के साथ मनाना चाहिए।
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