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रंग पंचमी 2023 | Rang Panchami 2023 | महत्व एवं मान्यता | रंग पंचमी क्यों मनाई जाती है? | होली की रंग पंचमी कब है?

Rang Panchami 2023
September 27, 2021

 

आइये जानते है साल 2023 में Rang Panchami रंग पंचमी कब है , इसे क्यों मनाया जाता है और हिंदू धर्म में इसका क्या महत्व है?

 

वर्ष 2023 में रंग पंचमी 12 मार्च  2023 (रविवार) के दिन आएगी। रंग पंचमी हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाला एक विशेष त्योहार है। इस त्योहार को  होली के प्रसिद्ध उत्सव के पूरे पांच दिनों के पश्चात मनाया जाता है। वृंदावन और मथुरा में इस त्योहार को होली के समापन के रूप में मनाया जाता है। भारत के राज्य महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में रंग पंचमी के पर्व का बड़े स्तर पर आयोजन किया जाता है। महाराष्ट्र में मछली का व्यवसाय करने वाले लोग इस दिन को शिमगो के नाम से मनाते है। ब्रज क्षेत्र में इसे होली का अंतिम दिन कहा जाता है। इस अवसर पर भोजन में पूरनपोली का आवश्य ही शामिल किया जाता है।

 

उत्तरी भारत में इस त्योहार को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। कई स्थानों पर दही-हांडी प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है। इस प्रतियोगिता में सभी मिलजुल कर भाग लेते हैं। इस दिवस पर भगवान श्री कृष्ण और राधा जी की पूजा का विधान है। इस दिन भक्तों द्वारा राधा जी और श्री कृष्ण की दिव्य एकता और प्रेम को याद करके श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। रंग पंचमी का शाब्दिक अर्थ है रंगो के त्योहार का पांचवा दिन। इस दिन को सभी रिश्तेदार इकट्ठा होकर नए नए पकवान बनाते है। इस दिन तामसिक भोजन से दूर रहा जाता है।

 

रंग पंचमी कब है?

हिंदू पंचांग के अनुसार यह त्योहार फाल्गुन माह में आने वाले कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन होता है। प्रत्येक वर्ष इस पर्व को इसी समय मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इसकी तिथि में कोई परिवर्तन नहीं होता है। चंद्रमा के चरण के समय इस त्यौहार को मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह फरवरी या मार्च महीने में या इन महीनों के समीप मनाया जाता है। वर्ष 2023 में रंग पंचमी 12  मार्च रविवार  2021 के दिन है। 

रंग पंचमी 

मंगलवार 

22 मार्च 2022 

पंचमी तिथि 

6 : 25 सुबह प्रारम्भ , 22 मार्च 

04 : 20 सुबह समाप्त , 23 मार्च 

 

आइये जानते है रंग पंचमी क्यों मनाई जाती है?

मान्यताओं के अनुसार यह पर्व पंच तत्व को सक्रिय करने में मनुष्य और सृष्टि की सहायता करता है। मनुष्य और ब्रह्मांड का निर्माण प्रकाश, जल, हवा, आकाश और पृथ्वी अर्थात धरती से हुआ था। इसलिए इनके संतुलन को बनाए रखने के लिए रंग पंचमी को मनाया जाता है। 

 

धर्मग्रंथों में लिखा गया है इस शुभ दिन पर ही तामसिक और राजसिक गुण पर सत्त्वगुण ने विजय प्राप्त की थी। इस विजय के प्रतीक को रंग पंचमी के रूप में भक्तों द्वारा मनाया जाता आ रहा है। इस दिन प्रयोग किए जाने वाले रंगों से देवता आकर्षित होते हैं। इसलिए देवताओं को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न रंगों का प्रयोग किया जाता है। 

 

वर्ष 2023 की में कब है ये पर्व 

रंग पंचमी के त्योहार को इस साल 12 मार्च को रविवार के दिन मनाया जा रहा है। इस शुभ दिवस पर भक्तों द्वारा शोभायात्रा भी निकाली जाती है। 

नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाने के लिए इस दिन विधिवत अनुष्ठानों का पालन करके की गई पूजा बहुत ही फलदायी होती है। इस दिन के अनुष्ठान होली के त्योहार से भिन्न होते हैं। इसलिए पंचमी की तिथि का ज्ञान होना आवश्यक है। इस दिन बुरे विचारों को मन में नहीं लाना चाहिए। इसी के साथ साथ मदिरापान और तामसिक भोजन को ग्रहण करने से बचना चाहिए। 

 

रंग पंचमी का क्या महत्व है ?

भारतवर्ष में रंग पंचमी के पर्व का विशेष महत्व है। लेकिन उत्तरी भारत में इस पर्व को ज्यादा मान्यता प्राप्त है। महाराष्ट्र में यह त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन को सूखे गुलाल का प्रयोग करके लोगों द्वारा मिलजुल कर मनाया जाता है। महाराष्ट्र के साथ साथ राजस्थान और मध्य प्रदेश के लोग भी पंचमी के इस दिन को पूरी आस्था के साथ मनाते है। इस भगवान श्री कृष्ण और राधा जी को रंग चढ़ाया जाता है। इस त्योहार के दिन भक्त नृत्य, संगीत और गीत गाते हैं। इस दिन ढोल और नगाड़े बजाकर नृत्य का आनंद लिया जाता है। उज्जैन में इस दिन तोपों से गुलाल को हवा में उठाया जाता है। इस प्रकार धमाकों के साथ फूल और गुलाल को लोगों पर फेंका जाता है।

 

विभिन्न क्षेत्रों में इस पर्व को मनाने की परंपराएं अलग हो सकती हैं। लेकिन इसका उद्देश्य सभी स्थानों पर एक जैसा ही रहता है। माना जाता है कि पंचमी के इस शुभ अवसर पर साकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इस दिन देवताओं को रंगों के प्रयोग से पृथ्वी पर आने के लिए आमंत्रित किया जाता है। जिस प्रकार होलिका दहन की अग्नि वातावरण को राजसिक और तामसिक कणों से मुक्त करती है। उसी प्रकार पंचमी की यह पवित्र तिथि पंच तत्वों के प्रहार को वातावरण में तेज कर देती है। यह त्योहार भाई चारे को बढ़़ाने का संदेश लेकर आता है। प्रेम का प्रतीक माना जाने वाला यह पर्व मिलजुुल कर पूरी श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।

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