जनवरी 4, 2023 |
बुधवार |
पौष, शुक्ल त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 10:01 पी एम, जनवरी 03
समाप्त – 12:00 ए एम, जनवरी 05
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जनवरी 19, 2023 |
बृहस्पतिवार |
माघ, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 01:18 पी एम, जनवरी 19
समाप्त – 09:59 ए एम, जनवरी 20
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फरवरी 2, 2023 |
बृहस्पतिवार
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माघ, शुक्ल त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 04:26 पी एम, फरवरी 02
समाप्त – 06:57 पी एम, फरवरी 03
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फरवरी 18, 2023 |
शनिवार |
फाल्गुन, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 11:36 पी एम, फरवरी 17
समाप्त – 08:02 पी एम, फरवरी 18
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मार्च 4, 2023 |
शनिवार |
फाल्गुन, शुक्ल त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 11:43 ए एम, मार्च 04
समाप्त – 02:07 पी एम, मार्च 05
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मार्च 19, 2023 |
रविवार |
चैत्र, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 08:07 ए एम, मार्च 19
समाप्त – 04:55 ए एम, मार्च 20
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अप्रैल 3, 2023 |
सोमवार |
चैत्र, शुक्ल त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 06:24 ए एम, अप्रैल 03
समाप्त – 08:05 ए एम, अप्रैल 04
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अप्रैल 17, 2023 |
सोमवार |
वैशाख, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 03:46 पी एम, अप्रैल 17
समाप्त – 01:27 पी एम, अप्रैल 18
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मई 17, 2023 |
बुधवार |
वैशाख, शुक्ल त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 11:36 पी एम, मई 16
समाप्त – 10:28 पी एम, मई 17
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जून 1, 2023 |
शुक्रवार |
ज्येष्ठ, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 01:39 पी एम, जून 01
समाप्त – 12:48 पी एम, जून 02
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जून 15, 2023 |
बृहस्पतिवार |
आषाढ़, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 01:16 ए एम, जुलाई 01
समाप्त – 11:07 पी एम, जुलाई 01
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जुलाई 1, 2023 |
शनिवार |
आषाढ़, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 01:09 मध्यरात्री , जून 26 |
जुलाई 30, 2023 |
रविवार |
श्रावण, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 10:34 ए एम, जुलाई 30
समाप्त – 07:26 ए एम, जुलाई 31
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अगस्त 13, 2023 |
रविवार |
श्रावण, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 08:19 ए एम, अगस्त 13
समाप्त – 10:25 ए एम, अगस्त 14
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अगस्त 28, 2023 |
सोमवार |
श्रावण, शुक्ल त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 06:22 पी एम, अगस्त 28
समाप्त – 02:47 पी एम, अगस्त 29
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सितम्बर 12, 2023 |
मंगलवार |
भाद्रपद, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 11:52 पी एम, सितम्बर 11
समाप्त – 02:21 ए एम, सितम्बर 13
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सितम्बर 27, 2023 |
बुधवार |
भाद्रपद, शुक्ल त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 01:45 ए एम, सितम्बर 27
समाप्त – 10:18 पी एम, सितम्बर 27
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अक्टूबर 11, 2023 |
बुधवार |
आश्विन, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 05:37 पी एम, अक्टूबर 11
समाप्त – 07:53 पी एम, अक्टूबर 12
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अक्टूबर 26, 2023 |
बृहस्पतिवार |
आश्विन, शुक्ल त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 09:44 ए एम, अक्टूबर 26
समाप्त – 06:56 ए एम, अक्टूबर
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नवम्बर 10, 2023 |
शुक्रवार |
कार्तिक, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 12:35 पी एम, नवम्बर 10
समाप्त – 01:57 पी एम, नवम्बर 11
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नवम्बर 24, 2023 |
शुक्रवार |
कार्तिक, शुक्ल त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 07:06 पी एम, नवम्बर 24
समाप्त – 05:22 पी एम, नवम्बर 25
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दिसम्बर 10, 2023 |
रविवार |
मार्गशीर्ष, कृष्ण त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 07:13 ए एम, दिसम्बर 10
समाप्त – 07:10 ए एम, दिसम्बर 11
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दिसम्बर 24, 2023 |
रविवार |
मार्गशीर्ष, शुक्ल त्रयोदशी |
प्रारम्भ – 06:24 ए एम, दिसम्बर 24
समाप्त – 05:54 ए एम, दिसम्बर 25
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प्रदोष व्रत 2023 – हिंदू धर्म के अनुसार प्रदोष व्रत को कलियुग में बहुत शुभ माना जाता है और शिव कृपा प्रदान करने वाला माना जाता है। महीने की त्रयोदशी तिथि में, शाम को प्रदोष काल कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं और देवता उनके हुनर की प्रशंसा करते हैं। प्रदोष व्रत रखने से सभी प्रकार के कष्ट और दोष मिट जाते हैं। सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना अलग ही विशेष महत्व है। प्रदोष व्रत किसी भी माह की त्रयोदशी तिथि को होता है। पहला प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को और दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत कब है, शुभ मुहूर्त और इसका क्या महत्व है।
Pradosh Vrat सूर्यास्त से पहले प्रदोष काल के दौरान किए गए नियम, व्रत और अनुष्ठान को प्रदोष व्रत कहा जाता है। व्रतराज नामक पुस्तक में, सूर्यास्त से तीन घंटे पहले, इस समय को प्रदोष काल माना जाता है। तिथियों में त्रयोदशी तिथि को प्रदोष तीथि के नाम से भी जाना जाता है। इसका अर्थ है कि त्रयोदशी की शाम को जो व्रत मनाया जाता है उसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। प्रदोष व्रत पूर्व विद्धा तिथि के संयोग से मनाया जाता है। अर्थात यह व्रत द्वादशी की संयुक्त त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है।
Pradosh Vrat प्रदोष व्रत की कथा सुनने वालो पर इस्वर की कृपा बानी रहती है और इसे हिन्दू धर्म में उचच मान्यता प्राप्त है। आइये जानते है प्रदोष व्रत कथा :- कुछ दिनों के बाद वह पुरुष पत्नी को लेने उसके पास गया। जब वह बुधवार को अपनी पत्नी के साथ लौट रहा था, तो उसके ससुराल वालों ने यह कहते हुए उसे रोकने की कोशिश की कि बुधवार उसके जाने के लिए शुभ नहीं है । लेकिन वह नहीं मानी और अपनी पत्नी के साथ चली गई। शहर के बाहर पहुँचने पर पत्नी को प्यास लगी। उस पुरुष ने एक लोटा लिया और पानी खोजने लगा। पत्नी एक पेड़ के नीचे बैठ गई। कुछ समय बाद वह आदमी पानी लेकर लौटा, तब उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी से बात कर रही है और उसके जलपान से पानी पी रही है। वह दृश्य देख उससे गुस्सा हो गया।
Pradosh Vrat जब वह पास आया, तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि उस आदमी की शक्ल उस तरह की थी। पत्नी भी सोच में पड़ गई। दोनों पुरुष झगड़ने लगे। भीड़ इकट्ठी हो गई। सिपाही पहुंचे। वही पुरुषों को देखकर वे भी हैरान रह गए। उसने महिला से पूछा, ‘उसका पति कौन है?’ तब वह पुरुष महादेव से प्रार्थना करने लगा – “हे देवो के देव ! हमारी रक्षा करो। हमारी रक्षा करो। मैंने बहुत बड़ी गलती की कि है प्रभु मैंने अपने सास-ससुर की बात नहीं मानी और बुधवार को अपनी पत्नी को विधा कर ले आया । मैं ऐसी गलती भविष्य में कभी नहीं करूंगा। ‘
Pradosh Vrat जैसे ही उसकी प्रार्थना पूरी हुई, तब ही वह दूसरा पुरुष अचानक से ओझल हो गया। और पति-पत्नी अपने घर सुरक्षित पहुंच गए। उस दिन के बाद से, पति और पत्नी ने बुध त्रयोदशी प्रदोष का व्रत शुरू किया।
Pradosh Vrat इस व्रत का बड़ा महत्व वेदों के गुरु और भगवान के भक्त श्री सूत जी ने सुनाया, गंगा के तट पर किसी समय सौनाकादि ऋषियों को सुनाया गया था। सूत जी ने कहा है कि कलियुग में, जब कोई व्यक्ति धर्म के आचरण से दूर होकर अधर्म के मार्ग पर चलेगा, अन्याय और अत्याचार सभी जगह व्याप्त हो जाएगा। मानव अपने कर्तव्य से विचलित हो जाएगा और दुष्ट कर्म में संलग्न होगा, उस समय प्रदोष व्रत एक ऐसा व्रत होगा जो मनुष्य को शिव की कृपा का पात्र बना देगा और कम गति से मुक्त होकर, मनुष्य को स्वर्ग लोक को प्राप्त होगा। सूत जी ने सौनकादि ऋषियों से यह भी कहा कि प्रदोष व्रत के द्वारा, कलियुग में मनुष्य के सभी प्रकार के कष्ट और पाप पुण्य से मुक्ति पा सकता है।
Pradosh Vrat यह व्रत बहुत कल्याणकारी है, इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को मनचाही इच्छा प्राप्त होगी। इस उपवास में सूतजी ने यह भी बताया कि अलग-अलग दिनों के प्रदोष व्रत का क्या लाभ है। सौत जी ने सौनकादि ऋषियों से कहा कि भगवान शंकर माता सती को इस व्रत की महानता बताने वाले पहले व्यक्ति थे।
Pradosh Vrat प्रदोष व्रत 2023 करने के लिए सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और भगवान शिव को जल चढ़ाएं और भगवान शिव की पूजा करें। शाम को फिर से स्नान करके इस तरह से शिव की पूजा करनी चाहिए। प्रदोषकाल के दौरान भगवान शिव को शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि अर्पित करें।
Pradosh Vrat निर्जल तथा निराहार उपवास करना सबसे अच्छा है, लेकिन यदि यह संभव नहीं है, तो नक्तव्रत करें। पूरे दिन सामर्थ्य के अनुसार कुछ भी न खाएं या फिर फल लें। पूरे दिन भोजन न करें। सूर्यास्त के कम से कम 72 मिनट बाद, कोई हविष्यान्न ग्रहण कर सकता है। शिव पार्वती दंपति का ध्यान और पूजा करके। प्रदोषकाल में घी का दीपक जलाएं। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती का पुण्य मिलता है।
Pradosh Vrat प्रदोष व्रत एक ही देश के दो अलग-अलग शहरों के लिए अलग हो सकते हैं। क्योकि प्रदोष व्रत सूर्यास्त के समय, त्रयोदशी के दिन प्रबल होने पर निर्भर होता है। तथा दो शहरों का सूर्यास्त का समय अलग-अलग भी हो सकता है, इस प्रकार उन दोनो शहरों के प्रदोष व्रत का समय भी अलग-अलग होने की सम्भावना रहती है। सूर्यास्त होने का समय सभी शहरों के में अलग-अलग होता है। अतः प्रदोष व्रत करने से पहले अपने शहर का सूर्यास्त समय की जाँच जरूर कर लें। प्रदोष व्रत चन्द्र मास की शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की इन दोनों त्रयोदशी के दिन ही किया जाता है।
Pradosh Vrat हिंदू धर्म में पूजा पाठ का अलग ही स्थान और महत्व है। हर त्यौहार और व्रत किसी एक भगवान पर आधारित होकर मनाया या रखा जाता है और उस दिन पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसी तरह प्रदोष व्रत का भी हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। प्रदोष व्रत के दिन महादेव शिव के साथ देवी पार्वती की भी पूजा की जाती है। साथ ही, भगवान शिव के मंत्रों का जाप किया जाता है ताकि महादेव शिव की कृपा अपने भक्तों पर बनी रहे।
Pradosh Vrat प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत कहा जाता है। यदि ये तिथियां सोमवार हैं तो इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है, यदि मंगल वार, तो इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है और शनिवार को इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। प्रदोष व्रत विशेष रूप से सोमवार, मंगलवार और शनिवार को बहुत प्रभावी माना जाता है। आमतौर पर, विभिन्न स्थानों पर द्वादशी और त्रयोदशी की तिथि को प्रदोष तिथि कहते हैं।
इस प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) को करने वालो को अपनी पूजा की थाली में ,गुलाल,चंदन,काले तिल, फूल,धतूरा,बिल्वपत्र,शमी पत्र,जनेऊ,कलावा,दीपक कपूर,अगरबत्ती एवं फल आदि के साथ ही पूजा करनी चाहिए।
Pradosh Vrat भगवान शिव की पूजा करने और प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) करने से घर में सुख शांति आती है और पापों से छुटकारा मिलता है। यही नहीं, संतान की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए भी यह व्रत बहुत फलदायी है। विवाह की इच्छा रखने वाली लड़कियों को इस व्रत का पालन करने से एक अच्छे वर की प्राप्ति होती है और घर में लड़ाई झगड़े भी समाप्त होते हैं।
यह व्रत विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के साथ किया जाता है। यदि किसी को सुख, सौभाग्य और धन की आवश्यकता है, तो हर महीने की त्रयोदशी तिथि के दिन शुक्रवार का व्रत करना शुभ होता है। प्रदोष व्रत लंबे जीवन के लिए रविवार को रखना चाहिए। दूसरी ओर, यदि आपकी संतान होने की इच्छा है, तो शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष के दिन व्रत रखना शुभ होता है। कर्ज से छुटकारा पाने के लिए सोमवार के दिन प्रदोष व्रत रखना सबसे अच्छा होता है।
इस व्रत को 11 या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना जरूर करना चाहिए।
इस प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) का उद्यापन त्रयोदशी तिथि के दिन ही करना उचित रहता है।
उद्यापन वाले दिन से एक दिन पूर्व भगवान् श्री गणेश का पूजन किया जाना बहुत शुभ माना जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण भी करना चाहिए है।
इस प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) वाले दिन जल्दी उठकर मंडप बनाना चाहिए, मंडप को वस्त्रों और रंगोली से सजाकर तैयार किया जाना चाहिए है।
‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ इस मंत्र की एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाना बहुत प्रभावशाली होता है।हवन में आहूति के लिए गाय के दूध से बानी खीर का प्भोग लगाया जाता है।
हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव शंकर जी की आरती की जाती है और शान्ति पाठ भी किया जाना उचित रहता है। हवन की पूर्णाहुति के बाद में दो ब्रह्माणों को स्वादिष्ट भोजन भी कराया जाता है और अपने श्रद्धा के अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद भी प्राप्त किया जाता है।
Pradosh Vrat- प्रदोष व्रत का महत्व ऐसा बताया गया है कि यदि व्यक्ति अपने गृहस्थ जीवन में जप, तप के नियमों का पालन करता है। यदि फिर भी उसके गृहस्थ जीवन में दुःख, संकट, आर्थिक संकट, पारिवारिक कलेश, संतानहीनता या विभिन प्रकार के कष्ट, बाधाएं या समस्याएं समाप्त नहीं हो रही हैं, तो उस व्यक्ति के लिए हर महीने प्रदोष व्रत पर जप, दान, व्रत आदि करना शुभ होता है।
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