नौचन्दी मेला – Nauchandi Mela
नौचन्दी मेला भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य के प्रसिद्ध मेलों में से एक मेला है। नौचन्दी का मेला मेरठ में हर साल लगता है। यहां का ये ऐतिहासिक नौचन्दी मेला जो की हिन्दू-मुस्लिम की एकता का भी प्रतीक माना जाता है। हजरत वाले मियां की दरगाह और नौचन्दी देवी माँ का मंदिर एक दूसरे के समीप ही स्थित हैं। मेले के समय मंदिर के घण्टों की ध्वनि और अजान की आवाज़ एक सांप्रदायिक आध्ययात्मिकता की प्रतिध्वनि प्रस्तुत करती है। यह नौचन्दी मेला चैत्र मास के नवरात्रि के त्यौहार से एक सप्ताह पूर्व से, और लगभग होली के एक सप्ताह बाद तक यह मेला लगता है। और लगातार एक माह तक चलता है।
इतिहास – Itihas
नौचन्दी के मेले का स्वरूप पौराणिक मेरठ के प्राचीन इतिहास से जुड़ा हुआ है। नौचन्दी मेला मुग़ल काल से चला आ रहा है। नौचन्दी के इस मेले ने शहर के कई स्वतंत्रता आंदोलनों को भी महसूस किया है। स्वतंत्रता सेनानियों के महान संघर्ष की नौचन्दी गवाह बनी थी। वहीं उन्होंने शहादत के दर्द को भी इस मेले ने बहुत ही करीब से महसूस किया।
स्वतंत्रता संग्राम का गवाह – Svatantrata Sangraam Ka Gavaah
नौचन्दी मेला – अत्याचार एवं बगावत के सुरों को इस नौचन्दी ने खूब सुना है । यहीं नहीं साल 1857 का महा संग्राम को देखने का भी गौरव नौचन्दी से अछूता नहीं रहा है। आजादी की मूरत रूप ली हुई नौचन्दी ने शहर के कई प्रकार के उतार चढ़ाव भी देखे है। परन्तु मेले की शानोशौकत एवं रौनक कभी भी कम नहीं हुई। देश जब आजाद हुआ था तो बंटवारे का वक्त भी आयाथा। चाहे शासन मुग़लों का रहा हो या फिर अंग्रेज़ी हुकूमत का या फिर स्वतंत्रता संग्राम या सांप्रदायिक दंगे हुए हो, लेकिन आज तक ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि शहर में नौचन्दी का मेला ना लगा हो।
मेरठ की शान – Merath Kee Shaan
अप्रैल माह में लगने वाला ये नौचन्दी मेला ही मेरठ शहर की शान मानी जाती है। इन दिनों यह मेला पूरे शबाब पर रहता है। इस मेले का आयोजन मेरठ शहर के अंदर नौचन्दी मैदान में प्रति वर्ष किया जाता है। हर तरफ से मेले में आने जाने के साधन जैसे सिटी बसें, टम्पू व रिक्शा और अनन्य साधनो की उपलब्धता रहती हैं। इसकी एक अलग खासियत और है। कि यह मेला रात के समय में लगता है। दिन के समय में ये नौचन्दी मैदान पूरा खली रहता है।
नव चंडी अथवा नौचन्दी – Nav Chandi Athava Nauchandi
नौचन्दी मेला – नौचन्दी अथवा नव चंडी के नाम से यहाँ एक मंदिर है। इसके पास में ही बाले मियां की मजार भी है। मंदिर में रोज भजन-कीर्तन होते हैं तो वहीं मजार में कव्वाली व कवि सम्मलेन भी होता हैं। इसके अतिरिक्त एक बड़े मेले का आयोजन बी भी होता है मेले में जो कुछ भी होना चाहिए वो सब यहाँ पर होता है। भरपूर मनोरंजन, खेल कूद खाना-खुराक, भीड़-भाड़, सुरक्षा की व्यवस्था आदि सब कुछ इस मेले में होता है। पहले दूर दूर से गावों से लोग यहाँ पर आनंद लेने केलिए आते थे। सभी सपरिवार के सदस्य इस मेले का आनंद लेने केलिए यहाँ आते थे। परन्तु पिछले कुछ वर्षो से यह मेला हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता और झगडे के चलते अब लोगो करूझान मेले को ओर काम होता जा रहा है। प्रत्येक वर्ष कुछ न कुछ बवाल यहाँ पर हो ही जाता है। गाँव वाले मेले कम ही जाते हैं। माहौल आज कल खराब रहने लगा है। फिर यह भी मेला, मेला है। भारतीयता की पहचान है ये मेला । में आपको एक और खास बात और बताना चाहता हूँ की इस नाम से भारतीय रेलवे ने एक रेल भी चला राखी है। जिसका नाम नौचन्दी एक्सप्रेस है । मेरठ से मुरादाबाद, लखनऊ के रास्ते से इलाहाबाद तक ये ट्रैन चलती है। मेरठ शहर को राजधानी से जोड़ने वाली यह एकमात्र ट्रेन है।
झलक सम्पूर्ण संस्कृति की – Jhalak Sampoorn Sanskrti Kee
नौचन्दी मेला – भारत देश के कोने-कोने से व्यापारी लोग यहाँ आकर यहां भिन्न-भिन्न प्रकार के उत्पादो को यहाँ लाकर बेचते थे। इस मेले से आयोजन से न केवल शहर के लोगों को अपनी संस्कृति का ज्ञान होता था। बल्कि इस मेले से देश को आर्थिक लाभ भी मिलता था। अंग्रेज़ी हुकूमत के समय यहां पर बहुत बड़ा पशु मेले का आयोजन भी किया जाता था। इस मेले के माध्यम से अरबी घोड़ों का बेचा और खरीदा जाता था। सेना अपने लिए अदिकतर घोड़े इस मेले से ही खरीदती थी।
सौहार्द और सांप्रदायिक का प्रतीक – Sauhaard Aur Saampradaayik Ka Prateek
नौचन्दी मेला – ऐसा भी कहा जाता है कि शहर में जब कभी भी सांप्रदायिक दंगे हुए थे। तब नौचन्दी के इस मेले ने ही हिन्दू-मुस्लिम के बीच की कड़वाहट दूर किया था। सांप्रदायिक दंगों के पश्च्यात भी हिन्दू-मुस्लिम धर्म के लोग नौचन्दी के मेले में एक साथ देखने को मिल गए। शहर में नौचन्दी का मेला करीब 350 वर्षो से लगातार लगता आरहा। साल 1672 में नौचन्दी मेले की शुरुआत की गई थी। यह मेले की शुरुआत शहर में स्थित मां नवचंडी के मंदिर से ही की गई थी। शुरुआत में तो इस मेले का नाम नवचंडी मेला था। जो की बाद में नौचन्दी मेले के नाम से प्रसिद्द हुआ। वरिष्ठ लेखक एवं इतिहासकार और धर्मवीर दिवाकर की मान्यता के अनुसार “नवरात्र के दिनों में नौवें दिन यहां मेला लगना शुरू हुआ था। फिर धीरे- धीरे यह मेला बड़ा होता गया एवं इसका स्वरूप एक दिन से बदल कर कई दिनों में बदल दिया गया था। प्राचीन समय में ये नौचन्दी मेला मेरठ का ही नहीं, बल्कि ये मेला पूरे देश की शान था। इस नौचन्दी के मेले में हिन्दू-मुस्लिम दोनों धर्मो के लोगो की सहभागिता होती थी। इस मेले से शहर का सांप्रदायिक सौहार्द बना रहता था।और लोग भी इस मेले की एकता का सूचक भी मानते थे
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