नरक चतुर्दशी पूजा विधि – Narak Chaturdashi Puja Vidhi
- नरक चतुर्दशी के दिवस प्रात:काल सूर्योदय से पहले स्नान करने का महत्व है। इस दौरान तिल के तेल से तन की मालिश करनी चाहिए। उसके बाद औधषीय पौधे (चिरचिरा) को सिर के ऊपर से चारों तरफ 3 बार घुमाइए।
- नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिवस एक लोटे में पानी कोभरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का पानी नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा मानी जाती है। मान्यता के अनुसार माना जाता है की ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति प्राप्त होती है।
- स्नान के पश्चात दक्षिण दिशा की ओर हाथो को जोड़कर यमराज जी से प्रार्थना कीजिये। ऐसा करने से मनुष्य द्वारा वर्ष भर किए गए सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है।
- इस दिन यमराज के निमित्त तेल का दीपक घर के मुख्य द्वार से बाहर की ओर लगाएं।
- नरक चतुर्दशी के दिन सायं के समय सभी देवताओं की पूजा के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें। मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी सदैव घर मेंविराजित रहती है।
- नरक चतुर्दशी के रूप में चौदस भी कहते हैं, इसलिए रूप चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से सौंदर्य(सुंदरता) की प्राप्ति होती है।
- इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि के काल) में घर से व्यर्थ के सामान को फेंक देना चाहिए। इस परंपरा को दारिद्रय नि: सारण भी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली पर लक्ष्मी जी घर में आगमन करती है, इसलिए दरिद्रय यानि गंदगी को घर से निष्कासित करना चाहिए।
नरक चतुर्दशी का महत्व और पौराणिक कथाएं – Narak Chaturdashi Ka Mahatva
नरक चतुर्दशी के दिवस पर दीपक को जलने का धार्मिक और पौराणिक महत्व मन जाता है। इस दिन शाम के समय दीपक की रोशनी से अंधकार को प्रकाश(रौशनी) से दूर कर दिया जाता है। इसी कारण से नरक चतुर्दशी को “छोटी दीपावली” भी कहते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन दीपक जलाने के संदर्भ में कई पौराणिक और लौकिक मान्यताएं भी हैं।
- राक्षस नरकासुर का वध – पुरातन काल में नरकासुर नाम क एक दानव ने अपनी शक्तियों से देवी-देवताओ और साधु संतों को बहुत परेशान कर दिया था। नरकासुर का दुष्ताचार इतना बढ़ने लगा था, कि उसने देवताओ और संतों की 16 हज़ार स्त्रियों को बंधक बना लिया था। नरकासुर के कुरुरता से परेशान होकर सभी देवता और साधु संतो भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। इसके बाद भगवान श्री कृष्णजी ने सभी को नरकासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने का वचन दिया। नरकासुर को स्त्री के हाथों से मरने का अभिश्राप था। इसलिए भगवान श्री कृष्णजी ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर दिया था।नरकासुर की कैद से 16 हजार स्त्रियों को मुक्त कराया। बाद में ये सभी स्त्री भगवान श्री कृष्ण की 16 हजार पट रानियां के नाम से भी जानी जाने लगी।
नरकासुर के वध के उपरांत सभी लोगों ने कार्तिक मास की अमावस्या को अपने घरों में दीपक जलाए और तभी से ही नरक चतुर्दशी और दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा।
- दैत्यराज बलि की कथा : एक अन्य पौराणिक कथा में दैत्यराज बलि को भगवान श्री कृष्ण द्वारा मिले वरदान का उलेखन मिलता है। मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु जी ने वामन अवतार के काल त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि के मध्य दैत्यराज बलि के राज्य को 3 कदम में माप दिया था। राजा बलि जो कि परम दानी थे, उन्होंने यह देखकर अपना सम्पूर्ण राज्य भगवान वामन को दान कर दिया था। इसके बाद भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने के लिए कहा। दैत्यराज बलि ने कहा कि हे “प्रभु” त्रयोदशी से अमावस्या की अवधि में इन तीनों दिवस में हर वर्ष मेरा राज रहना चाहिए। इस दौरान जो मनुष्य मेरे राज्य में दीपावली मनाए उसके घर में लक्ष्मी का आगमन हो, और चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपको का दान कर। उनके सभी पितृ नरक में ना रहें और ना उन्हें यमराज की यातनाओ का सामना न करना पड़े।
राजा बलि की बातो के सुनकर भगवान वामन प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया। इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी व्रत, पूजन और दीप का दान का प्रचलन आरंभ हुआ।
धार्मिक और पौराणिक महिमा की वजह से हिंदू धर्म में नरक चतुर्दशी का बहुत महत्व है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के बीच में रहने वाला त्यौहार है। दीपावली से दो दिन पहले धन तेरस, नरक चतुर्दशी या छोटी दीवापली और फिर दीपावली, गोवर्धन पूजन व भाई दूज मनाई जाती है। नरक चतुर्दशी पर यमराज के निमित्त दीप के दान और पूजा करने से नरक के भय से मुक्ति प्राप्त होती है।
नरक चतुर्दशी शुभ मुहूर्त 2023 – Narak Chaturdashi Shubh Muhurat 2023
रविवार, 12 नवंबर 2023
चतुर्दशी तिथि शुरू: 11 नवंबर 2023 दोपहर 01:57 बजे,
चतुर्दशी तिथि समाप्त: 12 नवंबर 2023 दोपहर 0 2:44 बजे।
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