मलमास में राशि और नक्षत्र को किसी का भी स्वामित्व प्राप्त नहीं होता है। इसलिए इस मास में किसी भी शुभ कार्य को उचित नहीं माना जाता है। माना जाता है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु मलमास के दौरान होती है। उसकी आत्मा सीधे नरक में जाती है। इस समय में मांगलिक कार्यों को करना शुभ नहीं माना जाता। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है मलमास का कोई महत्व नहीं है। बुधवार के दिन गणेश जी के पूजन की अनुमति इस मास में मिलती है। पद्म पुराण में बताया गया है कि अधिक मास में गुरुवार से लेकर सोमवार तक किसी भी दिन व्रत को किया जा सकता है। इससे सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। मान्यताओं के अनुसार इस माह में आने वाले सोमवार के दिन भगवान शिव की आराधना करने से कई गुना फल प्राप्त होता है।
इस मास से जुड़ी हुई कथा का उल्लेख पुराणों में देखने को मिलता है। प्राचीन समय में मलमास का कोई स्वामी न होने के कारण उसकी सभी निंदा करने लगे है। जिससे की वह बहुत ही ज्यादा दुखी था। मलमास ने भगवान श्री विष्णु जी के पास जाने का निर्णय लिया। उसने प्रभु को अपनी सारी व्यथा सुनाई। जिसके बाद प्रभू उसे श्री कृष्ण के पास ले कर गए। श्री कृष्ण जी ने जब मलमास की पूरी बात सुनी तो उनको मलमास पर दया आ गयी। तब श्री कृष्ण ने बोलै की में आज से तुम्हारा स्वामी रहूंगा। तभी से सभी मलमास को पुरुषोत्तम मास के रूप में भी जानने लगे। मनुष्य पांच तत्वों से बना हुआ है और पुरुषोत्तम मास इन तत्वों का नियंत्रण बनाने में सहायक होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दो अमावस्याओं के मध्य में संक्रांति का त्यौहार आता है। जिस समय एक से दूसरी अमावस्या के बीच में संक्रांति उपस्थित न हो, उसको अधिक मास या मलमास कहा जाता है। सूर्य द्वारा राशि का परिवर्तन करना ही संक्रांति कहलाया जाता है।
प्राचीन ग्रंथों में लिखा गया है की तीन वर्षों में एक बार मलमास का महीना साल में जुड़ता है। इसे पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य जब अपनी अवस्था को एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना को ही ज्योतिष शास्त्र में संक्रांति का नाम दिया गया है।
चंद्र वर्ष और सौर वर्ष के दिनों की संख्या में अंतर होता है। दोनों वर्षों के दिनों को समायोजित करने के लिए अधिक मास को मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र की गणना के अनुसार एक सौर वर्ष में कुल 365 दिन 6 घंटे और 11 मिनट होते हैं। वहीं दूसरी ओर एक चंद्र वर्ष की बात की जाए तो इसमें 354 दिन और 9 घंटे होते है। इसी कारण से वर्ष की गणना को समान करने के लिए मलमास का उद्गम किया गया था।
अब हम मलमास की परिभाषा के बारे में बात करते है। मलमास तीन वर्षों में से आने वाले एक वर्ष का तेरहवां महीना होता है। इस अतिरिक्त माह के बारे में वर्तमान कैलेंडर में कोई जानकारी नहीं मिलती है। लेकिन प्राचीन काल से चले आ रहे इस मलमास की सहायता से वर्षों की गणना को बराबर किया जाता आ रहा है। यह तेरहवां महीना वर्ष के बीच में आता है, जिसके समय का पता कठिन ज्योतिषीय गणना की सहायता से लगाया जाता है।
मलमास में वर्जित कार्य – Malmas Me Varjit Karya
बारह राशिओं में मीन एक जलीय राशि की श्रेणी में आती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य के जलीय राशि में प्रवेश करने से पृथ्वी पर नकारात्मक परिणाम देखने को मिलते है। ऐसा होना पर लोगों के मन विचलित होना शुरू हो जाते है और बीमारियां बढ़ती है। इसलिए ऐसी परिस्थिति में शुभ व मांगलिक कार्यों को करना वर्जित माना जाता है।
इस समय सभी राशियों पर अलग अलग प्रभाव पड़ता है। इन प्रभावों को जानने के लिए और उसके समाधान के लिए आप ज्योतिष शस्त्र के विद्वान या पंडित की सहायता ले सकते है। बाकि इस मास से दौरान पड़ने वाले प्रमुख प्रभावों के बारे में हम आपको बताने जा रहे है। जोकि इस प्रकार से है।
वैसे तो मलमास को हिन्दू धर्म में अशुभ माना जाता है, लेकिन इस मास में किसी बच्चे का जन्म लेना शुभ माना जाता है। मलमास में पैदा हुआ हुआ शिशु भाग्यशाली होता है और अपने माता पिता के लिए भी सुबह होता है।
जब चंद्रमास के समय दो बार सूर्य राशि परिवर्तन करें अर्थात दो सूर्य संक्रांति आ जाएं, तो उसे क्षयमास कहा जाता है। ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है और यह केवल कार्तिक, मार्ग और पौस के महीनों में होता है। ऐसी परिस्थिति में मलमास आवश्य ही पड़ता है और ऐसी स्थिति 19 या 141 वर्षों के बाद ही देखने को मिलती है। इस पुरषोत्तम मास के पैदा हुआ बच्चे को किसी अवतार से कम नहीं माना जाता है। यह शिशु स्वयं तो भाग्यवान होता ही है, लेकिन अपने साथ साथ माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों का भी भाग्योदय कर देता है।
16 दिसम्बर 2023 से सूर्य की धनु संक्रांति के कारण मलमास शुरू हो जायेगा। मलमास में विवाह आदि कार्य नहीं होते है। उसके बाद मकरसंक्रांति 15 जनवरी 2023 के बाद विवाह आदि कार्य संपन्न होंगे 15 मार्च 2023 के बाद मीन खरमास शुरू हो जायेगा।
मलमास में कुछ ऐसे कार्य है जिन्हे करने की अनुमति होती है। लेकिन इनको करने से पहले किसी ज्योतिष शस्त्र के विद्वान या पंडित की सलाह आवश्य लेनी चाहिए। इनकी देख रेख में ही वैदिक मंत्रो का उच्चारण करते हुए रुद्राभिषेक, सूर्य और वृहस्पति की आराधना करनी चाहिए। रुद्राभिषेक के साथ साथ आप निसंकोच महामृत्युंजय का हवन और जाप कर सकते है। माना जाता है कि इस मास में शनिवार के दिन किए रुद्राभिषेक से सभी ग्रहों द्वारा पड़ने वाले बुरे प्रभाव ख़त्म हो जाते है। जिससे सुखदायी जीवन की प्राप्ति होती है। पुरषोत्तम मास में भगवान विष्णु जी और भगवान शिव जी की आराधना से कई गुना अधिक फल मिलता है।
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