महावीर जयंती हिंदुओं के साथ साथ जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा भी मनाये जाने वाला उत्सव है। यह दिन महावीर स्वामी जी को समर्पित होता है। इसके माता पिता पारसव का अनुसरण करते थे। कहा जाता है कि उन्होंने अपने बचपन में एक भयानक जहरीले सांप पर बिना भयभीत हुए ही नियंत्रण पा लिया था। तभी से उन्हें महावीर नाम से बुलाया जाने लगा।
जैन संप्रदाय के लोग इस दिन प्रार्थना करते है और मंदिरों को सजाकर इस दिन को पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। लंबे समय से इनके जन्म स्थान को लेकर काफी विवाद चलता आ रहा है, इसलिए हम आपको जन्म स्थान माने जाने वाले सभी स्थानों का नाम बताएंगे। तो आइए जानते हैं कि महावीर जयंती कब मनाई जाती है और महावीर जयंती है क्या?
महावीर जयंती का दिवस महावीर स्वामी का जन्मदिन मानकर मनाया जाता है। महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसा पूर्व में हुआ था। इनको जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है और जैन धर्म के ग्रंथों में इनके द्वारा दी गई शिक्षाओं का वर्णन विस्तार से देखने को मिलता है। जैन धर्म में माना जाता है कि यह धर्म सभी धर्मों में सबसे प्राचीन धर्म है। भगवान महावीर हिंसा के बिल्कुल विरुद्ध थे। महावीर का पहला सिद्धांत यही था कि किसी को बिना कष्ट दिए अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए। महावीर जी ने अपने जीवनकाल में लोगों को हमेशा सत्य का साथ देने के लिए लिए लोगों को प्रेरित करते थे। महावीर जयंती अस्तेय और ब्रह्मचर्य के सिद्धांत का ज्ञान देने वाला दिवस है।
हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह में आने वाले शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को यह दिन मनाया जाता है। सनातन धर्म में माना जाता है कि इसी दिन उनका जन्म हुआ था। यह त्योहार मार्च या अप्रैल महीने में आता है। इसे भगवान महावीर का जन्म मानकर मनाया जाता है। इस दिन महावीर जी को प्रसन्न करने के लिए शोभायात्रा निकाली जाती है और इनका पूजन किया जाता है।
हिंदू धर्म में प्रयोग किए जाने वाले कैलेंडर के अनुसार साल 2023 में 4 अप्रैल को मंगलवार के दिन महावीर जयंती को मनाया जाएगा। जिसमें त्रयोदशी तिथि का समय कुछ इस प्रकार से रहेगा।
त्रयोदशी की तिथि का समय अप्रैल 03, 2023 को 06:24 ए एम बजे – अप्रैल 04, 2023 को 08:05 ए एम बजे पर समाप्त हो जाएगा।
इस समय काल के अनुसार हिंदू धर्म के अनुयायी इस पर्व की पूजा को करते हैं। माना जाता है इस समय काल के बाद और पहले की गई पूजा सामान्य पूजा के समान होती है। लेकिन यदि जो पूजा और आराधना त्रयोदशी तिथि की अवधि में की जाती है, उससे कई गुना फल की प्राप्ति होती है।
महावीर जी अपने भक्तों को ब्रह्मचर्य जीवन का पालन करने का उपदेश देते थे। इसका पालन करते समय मनुष्य को किसी भी प्रकार की कामुक गतिविधि में सम्मिलित नहीं होना चाहिए। कुंडलीग्राम, जामुई, वैशाली, नालंदा, लछौर, बसोकुंड और कुंदलपुर को उनके जन्म स्थानों के रूप में जाना जाता है। इसी के साथ वह अस्तेय सिद्धांत का पालन कर अपने मन को नियंत्रित रखते थे। वह मन द्वारा प्रकट इच्छा से किसी वस्तु को ग्रहण नहीं करते थे। उनके अनुसार मात्र उस वस्तु को ग्रहण करना चाहिए जो किसी द्वारा पूरी आस्था से स्वयं दी जाए।
हिंदू ग्रंथों और पुराणों में भी कहा गया है कि मृत्युलोक से मुक्ति पाने के लिए मन पर नियंत्रण होना अति आवश्यक है। अपने तन मन को शुद्ध रखने के लिए महावीर जी इन नियमों का पालन कर अपना समय साधना और तपस्या में लगाते थे। जिसके फलस्वरूप उन्होंने 72 वर्ष की आयु में अपने शरीर को त्याग कर मोक्ष को प्राप्त किया था। उन्होंने अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया था। जैन धर्म में इनको अंतिम व 24वें तीर्थंकर का स्थान प्राप्त है।
जैन और हिंदू धर्म में महावीर जयंती का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म के अनुसार राजा सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के राज्यकाल के समय इनका जन्म हुआ था। आज के समय में यह स्थान बिहार के नाम से जाना जाता है। जिसका स्वप्न रानी त्रिशला को 14 दिन पश्चात आया था। इस स्वप्न में यह भविष्यवाणी हुई थी कि जन्म लेने वाला यह बालक भविष्य में तीर्थंकर बनकर आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त कर समाज को धर्म का मार्ग दिखाएगा।
महावीर जी सभी प्राणियों को समान दृष्टि से देखते थे। भगवान महावीर ने 12 वर्षों की कठोर तपस्या के बाद आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त किया था। इस तपस्या के दौरान इन्होंने कई समस्याओं और कष्टों का सामना किया था। कोलकाता के जैन मंदिर और बिहार के पावापुरी में स्थित मंदिर में इस दिन बड़े स्तर पर पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन भक्त पूरी आस्था और श्रद्धा से भगवान महावीर जी की आराधना करते है और पूजा का आयोजन करते हैं।
अन्य जानकारी