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कतिकी मेला और इसका इतिहास | Kaitiki Mela
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कतिकी मेला और इसका इतिहास | Kaitiki Mela
March 23, 2023

कतिकी मेला और इसका इतिहास | Kaitiki Mela

कतिकी मेला – Kaitiki Mela

 

आइये दोस्तों आज हम जानेंगे कतकी मेले के बारे में। कतिकी मेला उत्तर प्रदेश राज्य के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में बांदा जिले में एक कस्बा जिसका नाम कलिंजर है। कतिकी मेला कालिंजर के दुर्ग में प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगता है। कतिकी मेला पाँच दिन तक लगातार लगता है। इसमें मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं कि भीड़ आती है। साक्ष्यों के अनुसार माने तो कतिकी मेला चंदेल शासक परिमर्दिदेव (1165 -1202) के समय में शुरू हुआ था। जो की आज तक ये मेला लगता आ रहा है। कालिंजर के इस महोत्सव का उल्लेख सबसे पहले परिमर्दिदेव के मंत्री और नाटककार वत्सराज द्वारा रचित नाटक के रूपक षटकम में देखने को मिलता है। उनके शासनकाल में प्रति वर्ष मंत्री वत्सराज के दो प्रकार के नाटकों का मंचन किया जाता था जो इसी मेले के उत्सव में होता था। कालांतर में मदनवर्मन के समय में एक पद्मावती नाम की एक नर्तकी थी जिसके के नृत्य के कार्यक्रमों का उल्लेख भी इसी कालिंजर के इतिहास में हमे देखने को मिलता है। पद्मिनी का नृत्य उस समय में इस महोत्सव का मुख्य आकर्षण का केंद्र हुआ करता था। एक सहस्र वर्ष से लेकर यह परंपरा आज भी इस कतकी मेले के रूप चलती लगातार चली आ रही है। जिसमें विभिन्न स्थानों से लाखों लोग यहाँ पर आकर विभिन्न सरोवरों में स्नान करके नीलकंठेश्वर महादेव के दर्शन कर के पुण्य लाभ को अर्जित करते हैं। तीर्थ-पर्यटक दुर्ग के ऊपर की ओर एवं नीचे की ओर लगे मेले में खरीददारी आदि करने केलिए भी लोग यहाँ आते हैं। इसके अलावा भी यहाँ ढेरों तीर्थयात्री अलग अलग स्थानों से यहाँ आते है। और तीन दिन तक का कल्पवास भी यहाँ करते हैं। भक्तो की भीड़ और उत्साह के सामने दुर्ग की लम्बी चढ़ाई भी कम महसूस होती है। यहाँ ऊपर पहाड़ के बीचों-बीच गुफानुमा में तीन खंड का नलकुंठ भी है। जो की सरग्वाह के नाम से विख्यात है। वहां पर भी भक्तो की भीड़ जुटती रहती है।

 

इतिहास – Itihas

 

कतिकी मेला – उत्तर प्रदेश में माँ गंगा और यमुना जैसी पावन नदियों के दोआब में स्तिथ बिठूर का कार्तिक मेला एक ऐतिहासिक युद्द का गवाह भी रहा है। इसके बारे में ऐसा कहते है की 2 वी शताब्दी के उत्तरार्द्व में कार्तिक पूर्णिमा के समय चारो ओर के संत और महाराज इस मेले की तयारी में लगे हुए रहते है। तो मांडवगढ़ के राजा जाम्भी का पुत्र करिंगा भी इस मेले में जाने लगा। तब उसकी बहन भी मनुहारपूर्ण वाणी में उसने कहा की भाई मेरे लिए भी इस मेले से कोई अनमोल वस्तु लेके आना। तो फिर वह अपनी बहन से वादा करके अपनी सेना के साथ मेले के लिए वह से रवाना हो गया। इस कतकी मेले में महोबा के चंदेल राजा परमार्दि देव की रानी मलना भी अपनी बहन के साथ उस मेले में आई हुई थी। उस समय बिठूर की सिमा केवल 5 कोस की ही थी। राजा के दो पुत्र दक्षराज और वृत्सराज महोबा से केवल 3 किलोमीटर दूर दसहरापुर में वे महल बना कर वह पर रहते थे। दक्षराज के पुत्र आल्हा और ऊदल थे। दक्षराज की पत्नी देवलदेवी को उसकी छोटी बहन मैनादेवी के गले का हार देख कर करिंगा का मन डोल गया। उसने रानी की सेना पर आक्रमण बूल दिया। वह रानी का हार को छीन पाता तभी वहा गोरखपुर के बनरस गांव के तालान सैय्यद ने हल्ला मचा दिया तो उसकी आवाज को सुन कर उसकी सेना ने भी आक्रमण कर दिया। सैनिको ने करिंगा को मार कर वह से भगा दिया। रानी ने सैय्यद को फिर अपना धर्म भाई बना लिया। 

 

वहा के दर्शनीय स्थल – Darshaneey Sthal

 

कतिकी मेला – वाल्मीकि आश्रम हिन्दु धर्म के लिए इस पवित्र आश्रम का बहुत महत्व रहता है। यह वह स्थान है जहां वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी। संत वाल्मीकि इसी आश्रम ने निवास करते थे। जब राम ने सीता का त्याग किया था तो वह भी यहीं पर रहने लगीं थीं। इसी आश्रम में माता सीता ने लव व कुश नाम के दो पुत्रों को जन्म भी दिया। यह आश्रम कुछ ऊँचे स्थान पर बना हुआ है। इस आश्रम में पहुंचने के लिए सीढिय़ां बनाई गई हैं। इन्ही सीढिय़ों को व्यक्ति के लिए स्वर्ग जाने की सीढ़ी भी कहा जाता है। इस आश्रम से बिठूर के सुंदर दृश्य भी हमे देखने को मिलते है।

कतिकी मेला – ब्रह्मावर्त घाट को बिठूर का सबसे पवित्र घाट भी माना जाता है। भगवान ब्रह्मा के भक्त यहा गंगा नदी में पवित्र स्नान कर के खड़ाऊ धारण कर यहां उनकी पूजा-अर्चना करने के लिए यहाँ हैं। ऐसा कहा जाता है। कि भगवान ब्रह्मा ने यहां स्वंम एक शिवलिंग की स्थापना की थी। जो आज ब्रह्मेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्द है। 

कतिकी मेला – घाट इस घाट का निर्माण लाल पत्थरों से किया गया है। इस अनोखी निर्माण कला के प्रतीक इस घाट की नींव है।  इस की नीव अवध के मंत्री टिकैत राय ने ही राखी थी। घाट के समीप ही एक विशाल भगवान् शिव का मंदिर भी है। जहां कसौटी पत्थर से बना हुआ शिवलिंग स्थापित किया गया है।

कतिकी मेला – ध्रुव टीला ये वह स्थान है। जहां बालक ध्रुव ने अपने एक पैर पर खड़े होकर कड़ी तपस्या की थी। ध्रुव की तपस्या से प्रभावित होकर भगवान ने उसे दैवीय तारे के रूप में हमेशा चमकने का वर दिया था। इन सभी धार्मिक स्थलों के अतिरिक्त भी बिठूर में राम जानकी का मंदिर, लव-कुश का मंदिर, हरीधाम का आश्रम, जंहागीर की मस्जिद एवं नाना साहब नामक स्मारक एवं अन्य दर्शनीय स्थल भी यहाँ पर मौजूद हैं।

 

अन्य जानकरी :-

 

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