हिंदू धर्म में हरियाली अमावस्या बहुत महत्व रखती है। तथा हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने 30 दिन बाद अमावस्या आती है। इस दिन चंद्रदेव पूर्ण रूप से दिखाई नहीं देते और संपूर्ण रात्रि अंधकारमय रहती है। सावन की अमावस्या हरियाली का प्रतीक होती हैं। इस बार हरियाली अमावस 17 जुलाई 2023 सोमवार के दिन होगी। हरियाली अमावस वर्षा ऋतु में आती है और इस दिन संपूर्ण पृथ्वी पर हरियाली छाई हुई रहती है। मान्यता है कि इस दिन पीपल और तुलसी की पूजा की जाती है। तथा अन्य पौधे लगाए जाते हैं। अनेक मान्यताओं के चलते हरियाली अमावस मनाई जाती है।
अमावस्या के दिन पितरों को भोग लगाया जाता है और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रभु से विनती की जाती है। इसी के साथ इस संपूर्ण पृथ्वी में वृक्षों में पीपल और तुलसी की विशेष पूजा अर्चना कर परम पिता परमेश्वर से आराधना की जाती है, कि संपूर्ण सृष्टि इसी तरह हरी भरी रहे और जनजीवन सदैव आपकी कृपा से नवजोत रहे।
आइए जानते हैं हरियाली अमावस का महत्व तथा मनाने का विशेष कारण और हरियाली अमावस के दिन क्या करते हैं ? और किस तरह से मनाया जाता है। यह संपूर्ण विवरण आज आप इस लेख में जानने वाले हैं। इसलिए सभी श्रद्धालु हरियाली अमावस के इस विशेष लेख को ध्यान पूर्वक पढ़े।
हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष में 12 अमावस्या आती है। जिसमें सोमवती अमावस्या, भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या का खासा महत्व रहता है। इन सभी अमावस्या का जनजीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है और हर व्यक्ति अपने पितृ की शांति के लिए इस अमावस्या के दिन पित्रों को याद करते हैं। उन्हें भोग लगाते हैं तथा अपने सुख और शांति की कामना करते हैं। बताया जाता है कि हरियाली अमावस्या के दिन दान दक्षिणा, गरीबों को भोजन, पूजा पाठ तथा धार्मिक ग्रंथों का पाटन अति शुभ माना गया है। साथ ही इस दिन भगवान विष्णु के रूप में पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है और माता तुलसी को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाते हैं। वृक्षों की पूजा विधि विधान के साथ करना हरियाली अमावस्या के दिन ही शुरू होता है। इस दिन संपूर्ण पृथ्वी पर हरियाली की परछाई हुई होती है और प्रकृति अपने सौंदर्य पर होती है। इस प्रकृति के सौंदर्य को निहारते हुए परम पिता परमेश्वर से यह प्रार्थना की जाती है कि, हे प्रभु ऐसी हरियाली इस जगत में बनी रहे ऐसी आपकी कृपा सदैव पृथ्वी वासियों पर बनी रहे। ऐसी कामनाओं के साथ हरियाली अमावस्या का पर्व मनाया जाता है।
वर्ष में सभी अमावस्य अपना अपना विशेष महत्व की है। हरियाली अमावस को भारत के हर राज्य में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। तथा अलग-अलग आस्था के अनुसार इसका नाम उच्चारण किया जाता है। महाराष्ट्र में गटारी अमावस्या कहते हैं। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में चुक्कला एवं उड़ीसा में चितलागी अमावस्या कहते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार अमावस्या के दिन पितरों को भोग लगाते हुए उनकी आत्मा की शांति की परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना की जाती है। इसी श्रंखला में हरियाली अमावस श्रावण मास में होने की वजह से संपूर्ण पृथ्वी पर हरियाली छाई हुई होती है। इसीलिए इसे हरियाली अमावस कहते हैं। अमावस्या के दिन वृक्षारोपण करना अति श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन बंजर भूमि पर तथा खाली जगह वृक्ष रोपण कर हरियाली को और ज्यादा बढ़ाया जाता है। जिससे पृथ्वी वाशी संपूर्ण हरियाली का आनंद प्राप्त कर सकें। ऐसी मान्यताओं के चलते हरियाली अमावस मनाई जाती है।
आप यह तो अच्छी तरह जानते ही हैं कि संपूर्ण पृथ्वी पर कोई भी ऐसा सजीव नहीं है, जिसमें प्रभु का वास नहीं हो। भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूं। तथा जो भी वृक्षों में पीपल की पूजा करते हैं। उन्हें मेरी अर्थात भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है। तथा मन को शांति मिलती है। ऐसी मान्यताओं के चलते हरियाली अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष और तुलसी माता की पूजा की जाती है।
अमावस्या के दिन पितरों को पिंडदान तथा जल अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि अमावस्या के दिन पितरों अर्पित किया गया जल उन्हें शांति प्रदान करता है। और जो भी पितृ आत्माएं इस संसार में दोष के कारण भटक रही है। उन्हें शांति प्राप्त हो ऐसी कामना अर्थात प्रार्थना प्रभु से की जाती है। एसी कामनाओं के साथ हरियाली अमावस को खासा महत्व दिया जाता है।
किसी भी अमावस्या के दिन हर व्यक्ति को यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि इस रात्रि सभी वित्तीय शक्तियां तथा पशु पक्षी अपने विकराल रूप पर होते हैं। अतः इस अमावस्या की रात्रि सभी की शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए इस रात्रि को विशेष तौर पर सावधानी बरतनी चाहिए।
इस वर्ष हरियाली अमावस गुरुवार 28जुलाई 2023 को मनाई जाएगी तथा 27 जुलाई रात्रि 09:11 बजे – 28 जुलाई रात्रि 11:24 बजे तक अमावस्या रहेगी। हरियाली अमावस्या के दिन शुभ मुहूर्त में पितरों को जल अर्पित करना, पिंड दान करना, तथा दान पुण्य करना, अतिशय श्रेष्ठ फल की प्राप्ति का कारक होता है। इसीलिए श्रद्धालुओं को हरियाली अमावस्या के शुभ मुहूर्त के अनुसार सभी कार्य को विधि विधान के साथ करना उचित लाभप्रद होता है।
जो भी श्रद्धालु अमावस्या को विधि विधान के साथ मनाते हैं। तथा पूजा-अर्चना आदि करते हैं। उन्हें विशेष तौर पर पितरों को जल अर्पित करना होता है तथा उनकी शांति की प्रार्थना की जाती हैं।
पूजा के तौर पर वृक्षों में पीपल की और तुलसी माता की पूजा करना अति श्रेष्ठ फलों की प्राप्ति का कारक बताया गया है।
अमावस्या के दिन सभी पूजा पाठ विधि विधान के साथ करने चाहिए तथा शास्त्रों का अध्ययन करना उचित फलों का कारक होता है।
यदि आप सर्पदोष, शनी की दशा और प्रकोप व पितृपीड़ा से परेशान हो तो हरियाली अमावस्या के दिन शिवलिंग पर जल और पुष्प चढ़ाए।
श्रावण मास में भगवान शिव अतिशय प्रसन्न रहते हैं। इसीलिए भगवान शिव को प्रसन्न करते हुए शिव मंदिर में जल के साथ दुग्ध तथा पंचामृत अभिषेक जरूर करें।
उदयपुर में सभी त्योहारों पर मेलों का आयोजन किया जाता है। इसी श्रंखला में श्रावण मास की श्रावणी अमावस्या अर्थात हरियाली अमावस्या के दिन में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष 27 और 28 जुलाई को श्रावणी अमावस्या मेला आयोजित होने जा रहा है। मेला आयोजक टीम तथा प्रशासन के द्वारा मेले की संपूर्ण तैयारियां जोरों शोरों पर है। मेले के सभी कार्यक्रम कोविड-19 की सुरक्षा को मध्य नजर रखते हुए किए जा रहे हैं। साथ ही आपको बता दें सहेलियों की बाड़ी और फतेह सागर की पाल पर भरने वाला श्रावणी अमावस्या मेला अपने आप में एक खास झलक रखता है। पाल पर भरने वाला अमावस्या मेला खूबसूरती की दृष्टि से भी अति से मनोहर लगता है। क्योंकि इस समय वर्षा ऋतु के चलते सभी झीले और तालाब लबालब भर जाते हैं। जिससे प्रकृति की सुंदरता और निखर कर सामने आती है। इस मेले में संचालकों द्वारा छोटी-बड़ी दुकानें आवंटित की जाएगी। जिसके चलते मेले में आई हुए सभी महिलाएं आपनी आवश्यकता अनुसार खरीदारी कर सकती हैं। हरियाली अमावस्या के दिन महिलाएं इस मेले में अधिक रुचि लेती है।
फतेहपुर सागर महाराणा प्रताप स्मारक समिति द्वारा मुख्य द्वार पर 2 दिन निशुल्क प्रवेश रखा जाएगा। मेले के दिन सभी महिलायें सवेरे 7:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक घूम सकेंगे। समिति संचालक युद्धवीर सिंह शक्तावत के कथनानुसार मेले के दौरान निशुल्क प्रवेश रखा जाएगा।
उदयपुर श्रावणी अमावस्या मेला की विशेष लहरिया प्रतियोगिता 28 जुलाई को 1:00 से लेकर 3:00 बजे रखी जाएगी। यह प्रतियोगिता मोनालिसा कैमरा क्लब के द्वारा आयोजित की जाती है। इस मेले में जो भी महिलाएं लहरिया पहन कर आती है। उन्हें सर्वश्रेष्ठ तथा सुंदर लहरिया का अवार्ड भी दिया जाता है। तथा उन्हें उदयपुर सिटी पर दो शब्द बोलने का मौका भी दिया जाता है।
नगर निगम उदयपुर के महापौर चंद्रसिंह कोठारी का कहना है कि यह मेला गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज होगा। मिस्टर कोठारी का कहना है कि विश्व में सबसे ज्यादा महिलाओं की संख्या को देखते हुए श्रावणी अमावस्या मेला उदयपुर में ही आयोजित किया जाता है। अनुमान है कि इस वर्ष एक लाख से भी अधिक महिलाएं इस मेले में आएगी और यह संख्या महिलाओं की एक जगह किसी आयोजित किए गए मेले में होना अपने आप में एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है।
महिलाएं अपने श्रंगार हेतु अमावस्या मेला को बहुत महत्व देती है। इस दिन महिलाएं अपने श्रंगार संबंधी सामग्री खरीदी है। तथा बच्चों के लिए खिलौने खरीदती है। महिलाओं की अलग-अलग पोशाक पहन कर आना इस मेले की शोभा है।
श्रावणी अमावस्या के दिन भरने वाले मेले पर महिलाओं के अलावा कोई प्रवेश नहीं करता। अर्थात यह विश्व का सबसे बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। जहां पर एक लाख से भी अधिक महिलाएं शामिल होती है।
हरियाली अमावस्या के दिन उदयपुर सिटी में भरने वाला मेला खासतौर पर महिलाओं के लिए ही होता है। इस मेले में महिलाओं के अलावा पुरुष प्रवेश नहीं करते। अगर हम हरियाली अमावस्या मेले की इतिहास की बात करें तो यह हैं 1898 में हरियाली अमावस्या के दिन महाराणा फतहसिंह महारानी चावड़ी के साथ फतहसागर झील पहुंचे। तथा छलकते फतहसागर को देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए। इसी प्रसन्नता के चलते यहां पर बहुत बड़े मेले का आयोजन किया गया। महाराणा फतेह सिंह द्वारा इस जश्न पर रानी चावंडी ने महाराज फतेह सिंह से महिलाओं की सुरक्षा हेतु सवाल उठाए हैं। ऐसे में महाराणा फतेह सिंह ने ऐलान किया कि यह मेला सिर्फ महिलाओं के लिए होगा और यहां पर कोई पुरुष प्रवेश नहीं करेगा। इसी के चलते उदयपुर में भरने वाला हरियाली अमावस्या मेला केवल महिलाओं के लिए ही रखा जाता है।