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हिन्दू धर्म के साथ साथ सिख धर्म के अनुयायियों के लिए गुरु नानक जयंती बहुत विशेष होती है। गुरु नानक देव जी सिख धर्म का संस्थापक कहा जाता है और सिख नानक जी को अपना पहला गुरु मानकर पूजते है। गुरु नानक देव जी बचपन से ही आत्मचिंतन और सत्संग में अपना सारा समय व्यतीत करते थे। वह कहते थे कि जो कुछ भी है, सब परमात्मा का है। हमारा कुछ भी नहीं है। उन्होंने अपना सारा जीवन समाज की भलाई के लिए समर्पित कर दिया था। मात्र 30 साल की आयु में ही उन्होंने आत्मज्ञान की प्राप्ति कर ली थी। इसको नानक शाह और बाबा नानक जी के नाम से भी संबोधित किया जाता है। इस दिन को गुरु नानक जी की 554 वीं जन्म वर्षगांठ के रूप पूरे भारतवर्ष में मनाया जाएगा।
हिन्दू धर्म से पूर्णिमा का विशेष महत्व है, पूर्णिमा का पवित्र दिन प्रत्येक मास शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन में आती है। जिस दिन चंद्रमा पूर्ण रूप से दिखाई देता है और पूरे क्षेत्र को अपने प्रकाश से प्रकाशित कर देता है। प्रत्येक पूर्णिमा के दिन कोई न कोई त्यौहार एवं व्रत किया ही जाता है। हिन्दुओं के यह दिन बहुत विशेष होता है। गुरु नानक देव जयंती के दिन भी कार्तिक पूर्णिमा का व्रत किया जाता है।
भारत में कई स्थानों में पूर्णिमा को पुनमासी या पौर्णिमी के नाम से जाना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान महादेव जी ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। इसलिए इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। मान्यता है की इस दिन संध्या के समय भगवान श्री विष्णु जी का मत्स्य अवतार पृथ्वी पर हुआ था। इस दिवस को महापुनीत पर्व भी कहा गया है।
प्रत्येक वर्ष मनाए जाने वाला यह पर्व कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। पंजाब में इस दिन को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। सिख समुदाय के ज्यादा लोग पंजाब में ही रहते है, इसलिए गुरु नानक जयंती पर इस राज्य में माहौल देखने लायक होता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह दिन अक्टूबर या नवंबर महीने में आता है। पूर्णिमा की तिथि प्रत्येक मास बदलती रहती है, इसलिए अंग्रेजी कैलेंडर में इसकी तारीख भी बदलती रहती है। लेकिन हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु नानक जयंती कटक महीने अर्थात कार्तिक माह की पूर्णिमा को ही आती है।
इस पूर्णिमा के दिन गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। इसलिए उनके जन्मदिवस के रूप में गुरु नानक जयंती को मनाया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुयायी भी इस दिन को मनाते है। इसी के साथ कार्तिक पूर्णिमा व्रत का पालन करके भगवान विष्णु जी को प्रसन्न करने का प्रयास करते है। वर्षभर में आने वाली पूर्णमासियों में से ही कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा को भगवान श्री हरि के आशीर्वाद प्राप्ति के कामना से भक्तों द्वारा मनाया जाता है।
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म पंजाब के तलवंडी नाम के गांव में 15 अप्रैल 1469 में हुआ था। आज के समय यह स्थान पाकिस्तान के क्षेत्र में आता है। लेकिन आज भी इसे ननकाना साहिब कह कर बुलाया जाता है। इनकी माता जी का नाम तृप्ता देवी और पिता जी का नाम कल्याणचन्द था। नानक जी बचपन से ही रूढ़िवादी का विरोध करते थे और यह गंभीर स्वभाव के थे। नानक जी की एक बहन भी थी, जिनका नाम नानकी था। नानक जी का विवाह सुलक्षिनी जी से हुआ था और इनके घर दो पुत्रों ने जन्म लिया था। जिनमें से एक का नाम लक्ष्मी दास और दूसरे का नाम श्री चंद्र था।
नानक जी एक कवि, समाजसुधारक, दार्शनिक और देशभक्त भी थे। वह अमीर गरीब, छोटी बड़ी जाति के सभी लोगों को समान मानते और सभी के साथ बराबर बैठ कर भोजन करते थे। सन 1539 में नानक जी करतारपुर स्वर्ग गमन कर गए थे। उनके द्वारा दी गयी शिक्षा के अनुसार ईश्वर एक है और सभी प्राणियों और स्थानों में विद्यमान रहता है। मनुष्य को हमेशा ईमानदारी से किए गए काम से पेट भरना चाहिए और सदा सत्य बोलना चाहिए। हमें सभी को एक समान समझना चाहिए चाहे यह महिला हो या पुरुष। बुरे काम को करने के विचार को मन में नहीं लाना चाहिए और न ही किसी को परेशान चाहिए। मानव जीवन के लिए भोजन आवश्यक है, लेकिन मनुष्य को किसी वस्तु का लोभ नहीं करना चाहिए।
इस साल 27 नवंबर सोमवार के दिन पूर्णिमा का दिन होगा और इस दिन गुरु नानक जयंती को मनाया जाएगा। इस वर्ष गुरु नानक देव जी की 554 वीं जन्म वर्षगांठ होगी। इसी शुक्रवार के दिन को कार्तिक पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाएगा।
पूर्णिमा की तिथि 26 नवंबर को दोपहर 3 :50 pm से शुरू होकर
पूर्णिमा की तिथि 27 नवंबर को 14 :40 pm पर समाप्त हो जाएगी।
नानक जी के पिता का नाम कल्याणराय था। जब वो बाल्यावस्था में थे तो उनके पिता ने उनका यज्ञोपवीत करवाने का निर्णय लिया। जिसके लिए उनके पिता ने नानक जी के यज्ञोपवीत के अवसर पर एक समारोह का आयोजन किया, जिसमें सभी परिचितों और सम्बन्धियों को आमंत्रित किया गया था। पुरोहितों ने नानक जी को आसन दिया और यज्ञोपवीत धारण करने के अनुष्ठानों को करना आरम्भ कर दिया। ऐसे में नानक जी को जैसे ही मंत्र उच्चारण के लिए कहा गया तो नानक जी ने उनके द्वारा किए जा रहे यज्ञोपवीत के संस्कार और मन्त्रों के प्रयोजन के बारे में पूछा।
उस समय एक पुरोहित ने उत्तर देते हुए कहा आपका यज्ञोपवीत संस्कार किया जा रहा है। हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से पवित्र सूत का यह डोरा इस संस्कार के समय प्रत्येक हिन्दू को धारण कराया आता जा रहा है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार जब यह यज्ञोपवीत संस्कार पूर्ण होगा तब उसे तुम्हारा दूसरा जन्म माना जाएगा। इसलिए तुम्हें यह धारण करवाया जा रहा है।
उसके बाद बालक नानक जी ने पुनः प्रश्न किया कि यह यज्ञोपवीत सूत का है, यह तो गंदा भी होगा और टूट भी तो सकता है?
पुरोहित ने समझाते हुए कहा की हाँ, ऐसा होता है। लेकिन यज्ञोपवीत को साफ़ भी तो किया जा सकता है और विधिविधान का पालन करते हुए हम नया यज्ञोपवीत धारण भी तो कर सकते है।
नानक जी ने कुछ समय तक इस पर विचार किया और बोला की ठीक है। लेकिन जब मृत्यु के बाद मनुष्य शरीर जलता होगा, तो यह भी साथ में जलकर राख हो जाता होगा? इस यज्ञोपवीत को धारण करने का क्या लाभ है, जब मनुष्य का मन, शरीर, स्वयं यज्ञोपवीत और आत्मा इसे धारण करने से पवित्र नहीं हो पाती?
उनके इस प्रश्न का उत्तर समारोह में उपस्थित किसी भी विद्वान के पास नहीं था।
बालक नानक जी कहा कि कोई ऐसा यज्ञोपवीत है, जो गंदा न हो, टूट न सके और जो मन व आत्मा को पवित्र कर दे। जो संतोष के सूत से बना हो और जिसमें दया का कपास प्रयोग किया गया हो। हे पुरोहित जी ! यदि आपके पास ऐसा ईश्वरीय यज्ञोपवीत है तो कृपया मुझे बताइए। क्या है आपके पास ऐसा यज्ञोपवीत?
उनके इस वचनों को सुनकर सभी शांत हो गए। वहां पर उपस्थित किसी भी व्यक्ति के पास इसका कोई भी जवाब नहीं था। इस घटना के बाद ही उनके पिता को ज्ञात हो गया था कि आगे चल कर उनका बालक आवश्य ही लोगों की भलाई के लिए कोई बड़ा काम करेगा। गुरु नानक देव जी की सच्चा यज्ञोपवीत वाली इस घटना से कई लोग प्रभावित हुए थे।
गुरु नानक देव जी का पूरे भारत में बहुत महत्व है। इस दिन कई राज्यों में अवकाश होता है और लोग जयंती को धूमधाम से मना सकें। गुरु नानक देव जी की दी गई शिक्षाओं को 974 भजनों के रूप में आज सभी ग्रहण किया जाता है। इस पवित्र पुस्तक को सिख धर्म में गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से पूजा जाता है। सिख धर्म से अनुयायी इस ग्रंथ से शिक्षा प्राप्त कर गुरु नानक जी के वचनों को अपने जीवन में उतारते हैं। इस जयंती के दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है और गुरुवाणी के पाठ का आयोजन किया जाता है। सिखों द्वारा इस दिन अखंड पाठ का आयोजन किया जाता है, जिसमें यह पाठ पूरे दो दिनों तक चलता है। जगह जगह लंगर लगा कर गरीबों, जरूरतमंदों और श्रद्धालुओं को खाना खिलाया जाता है। दिनभर सभी गुरुद्वारों में कीर्तन किए जाते है। नानक जी कहा करते थे कि
“अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बंदे।
एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले कौन मंदे।।”
जिसका अर्थ है कि सभी मनुष्यों का जन्म ईश्वर के नूर से ही हुआ है, इसलिए कोई भी किसी से बड़ा या छोटा नहीं है। कोई भी मनुष्य खास या समान्य नहीं है। सभी एक समान है।
गुरु नानक जी अंधविश्वास के एकदम विरुद्ध थे। उन्होंने देश के कई स्थानों में स्वयं जाकर सिख धर्म का प्रचार किया था और अपने आध्यात्मिक ज्ञान से समाज का उद्धार किया था। गुरु नानक जी लोगों को महिलाओं का आदर, गरीबों की मदद और आपस में प्रेम भाव रखने के लिए प्रेरित करते थे। उनके द्वारा दिए गए उपदेशों से कई लोगों को अपना जीवन सुख के साथ व्यतीत करने में सहायता मिली है। इसी के साथ इस पूर्णिमा के दिन को हिन्दू धर्म में महा पुनीत पर्व कहा गया है। इसलिए इस दिन पुण्य की प्राप्ति के लिए लोगों द्वारा दान किया जाता है। हर पवित्र स्थलों और मंदिरों में सत्यनारायण का पाठ सुनने को मिलता है। लोग सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदियों में स्नान करते है। माना जाता है कि इससे तन और मन दोनों की शुद्धि हो जाती है।
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