गौरी तृतीया कब और क्यों मनाई जाती है और क्या है इसकी पूजा विधि? Gori Tritya Kab Hai

गौरी तृतीया कब है जानिए पूजा विधि –

हिंदू धर्म में गौरी तृतीया एक बहुत ही विशेष पर्व है। इस दिन को तीज की तरह मानकर, महिलाएं अपने पति और संतान रक्षा की कामना करती है। हिंदू धर्म के अनुसार इस तृतीया की तिथि के समय भगवान शिव जी का विवाह देवी सती जी के साथ हुआ था। इसलिए इस दिन को बहुत ही पवित्र माना जाता है। यह दिन कालसर्प दोष के निवारण के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। 

 

इस पवित्र समय पर यदि गौरी-शंकर रुद्राक्ष को धारण किया जाए तो सभी समस्याओं का निवारण हो जाता है। इस दिन किए गए व्रत से मनुष्य को सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है। पूजा के पूर्ण हो जाने पर दान जरूर करना चाहिए। इस दिन किए गए दान से सामान्य दिनों की अपेक्षा कई गुना ज्यादा फल की प्राप्ति होती है।

 

गौरी तृतीया कब मनाई जाती है? (Gori Tritya Kab Hai)

हिंदू पंचांग के अनुसार इस पर्व को माघ मास में आने वाले शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। वर्ष 2023 में इस पर्व को 24 मार्च को  शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा।

 

गौरी तृतीया को क्यों मनाया जाता है?

मान्यताओं के अनुसार इस दिन माता पार्वती को भगवान शिव जी की वर के रूप में प्राप्ति हुई थी। इसका उल्लेख पुराणों में भी देखने को मिलता है। भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए माता पार्वती जी ने कई वर्षों की तपस्या की थी। 

 

गौरी तृतीया की पूजा विधि (Gori Tritya Puja Vidhi)

  • इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया के उपरांत पवित्र स्नान करना चाहिए। स्नान के जल में गंगाजल को मिला लेना चाहिए।

 

  • स्नान के बाद व्रत का संकल्प करना चाहिए। कन्याओं द्वारा इस व्रत को करने से उनको अच्छे वर की प्राप्ति होती है। 

 

  • गौरी तृतीया के दिन भगवान शिव जी की भी देवी सती के साथ पूजा करनी चाहिए।

 

  • पूजा को आरंभ करने से पहले उनकी प्रतिमा को पंचगव्य की सहायता से स्नान करवाया जाता है। इसे बाद धूप, नैवेद्य, दीप और फल अर्पित करके पूजा को आरंभ किया जाता है। 

 

  • इस दौरान भगवान श्री गणेश जी की पूजा से पूजन को आरंभ किया जाता है। जिसमें श्री गणेश जी को जल, मौली, चंदन, रोली, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा, सिंदूर, लौंग, दक्षिणा और पान अर्पित किया जाता है। 

 

  • पूजा के बाद गौरी तृतीया की कथा को आवश्य ही सुनना चाहिए। कथा का विशेष महत्व है। पूजा के बाद माता पार्वती को सुहाग की सामग्री चढ़ानी चाहिए।

 

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