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ददरी मेला कब लगता है, भव्यता और महत्व | Dadari Mela
March 23, 2023

ददरी मेला कब लगता है, भव्यता और महत्व | Dadari Mela

ददरी मेला – Dadari Mela

 

आइये दोस्तों आज हम बात करेंगे ददरी मेले बारे में। खाटी भोजपुरी के लिए बलिया,गाजीपुर,देवरिया बहुत प्रसिद्ध है। इसे भृगुक्षेत्र भी कहा जाता है। गंगा एवं सरयू के पवित्र हाथों में मौजूद इस क्षेत्र का सांस्कृतिक रूप से और पौराणिक रूप से बहुत महत्व है। यह ऋषियो और महर्षियों की तपस्थली भी मानी जाती है। इन सभी ऋषियों में से भृगु ऋषि का नाम मुख्य रूप से लिया जाता है। वैसे तो महर्षि विश्वामित्र, परशुराम एवं जमदग्नि ने भी यहां पर अपने लिए आश्रम बनाये थे। शुक्ल यजुर्वेद मान्यता के अनुसार भृगु वैदिक ऋषि माने जाते है। “गीता  में भी श्रीकृष्ण ने कहा था कि में ऋषियों में भृगु का रूप हूं। इस बात से ये सिद्ध होता है कि भृगु तपे-तपाये ऋषि भी थे।

 

महत्व ददरी के मेला का – Dadari Ke Mela Ka Mahtav

 

ददरी मेला – एक प्रकरण की माने तो भृगु ने भगवान् शिवजी को लिंग के रूप में बदल जाने का शाप दे दिया था। ब्रह्म के द्वारा अपने आप को उपेक्षित महसूस भी किया था। एवं भगवान् विष्णु को अपने स्थान पर निद्रा की मुद्रा में देखकर उन पर क्रोधित हो कर उनकी छाती पर एक लात मारी थी। “पद्मपुराण” का प्रसंग ऐसा हैं। कि एक बार यज्ञ करने को सभी ऋषिगण रक स्थान पर एकत्र हुएथे। वहा पर ऋषियों ने एकमत बना कर भृगु को यह शुभ कार्य को सौप दिया था। कि वो यह पता लगाये कि सभी देवताओं मे से सबसे सबसे ऊंचा चरित्र किस देवता का है।

ददरी मेला – भृगु ने फिर इसी प्रसंग में ब्रह्मा, विष्णु, एवं महेश इन तीनों को अनुचित अवस्था में पाया था। और तीनो को उनके द्वारा ली गई परीक्षा में अनुत्तीर्ण भी पाया था। तब भी पवाघात से उठे भगवान् विष्णु ने भृगु के पैरो को सहलाते हुए विनम्रता से क्षमा याचना की और कहा था। कि कही के चरणों को कही कोई चोट तो नहीं लगी। विष्णु के इस विनम्रता के भाव से प्रसन्न होकर भगवान् श्री विष्णु को ही मनुष्य एवं देवताओं के द्वारा पूजनीय घोषित भी कर दिया था। परन्तु पदाघात का प्रायश्चित तो भृगु को करना था। भगवान् श्री विष्णु ने एक छडी की काठ को दी और उनसे कहा कि आप जाये। यह छड़ी जहा पर हरी रंग की हों जायेगी, वहीं पर आपका प्रायश्चित पूरा हो जायेगा। भृगु अन्यान्य तीर्थों का भ्रमण करते हुए जब गंगा-सरयू के संगम पर पहुंचे तो उन्होंने अपनी छड़ी को संगम पर गाड दिया था। संगम पर गड़ते ही वह छड़ी हरी रंग की हो गयी थी। तब इसी स्थान पर भृगु ने तपस्या की। फिर वह स्थान भृगु क्षेत्र के नाम से विख्यात हो गया था। भृगु ने यहां पर एक शिष्य परंपरा को कायम की। जिनमे एक दर्दर नामक ऋषि भी शामिल थे। दर्दर ने भृगु की यद् में एक मेले के भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। जिसमे तमाम ऋषियों ने भी हिस्सा लिया था। तो उसी के नाम पर इस मेले का नाम ही ददरी मेला रख दिया गया था। 

 

ददरी मेला की भव्यता – Dadari Mele Ki Bhavyata

 

ददरी मेला लगातार तीन सप्ताह तक चलता है। और कार्तिक पूर्णिमा केडी इस मेले का समापन होता है। ऐसा माना जाता है कि यहां पर गंगा-सरयू का स्नान एवं भृगु आश्रम का दर्शन लाभ करने से व्यक्ति के जन्म-जन्म के पापों से मिले कष्ट से मुक्त हो जाता है। ददरी का ये मेला पशु-मेला के लिए अधिक विख्यात है। यहां पर हाथी, घोड़ा, बैल, गाय, आदि से लेकर चिडिया-पक्षी भी इस मेले में बिकने के लिए यहाँ आते है‌। यहां पर मीना बाजार भी लगता है जिसमे सभी प्रकार की वस्तुएं खरीदी एवं बेची भी जाती है। इसके अतिरिक्त मनोरजन के संसाधन भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते है। नौटंकी, सर्कस, नाच-गान, तमाशा, प्रदर्शनी, खेलकूद, कुश्ती, आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम, एवं प्रवचन, कवि-सम्मेलन, गोष्ठी, बिरहा, दंगल, मुशायरा, कब्वाली आदि का भी वृहद कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है। जिसे देखने एवं सुनने के लिए दूर दूर से दर्शक एवं श्रोता यहाँ पर आते है। और मेले का आननद लेते है। ददरी मेला सभी मेलो में बड़ा मेला है। ददरी मेला भोजपुरी क्षेत्र का सबसे बड़ा मेला माना जाता है। ददरी का मेला भारत का सबसे प्रसिद्ध मेला माना जाता है।

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