Bhanu Saptami 2023 | भानु सप्तमी पूजा विधि
भारतवर्ष में संपूर्ण हिंदूवादी त्योहार और व्रत सभी सूर्यदेव की स्थिति पर निर्भर करते हैं। इसलिए सूर्यदेव हिंदू धर्म के लिए पूजनीय देव हैं। आज आप इस आर्टिकल के माध्यम से सूर्य देव की पूजा अर्चना के बारे में पढ़ने जा रहे हैं। आपको बता दें कि सूर्य देव को भानु सप्तमी के रूप में पूजा जाता है। तथा इस सप्तमी को अनेक नामों से जाना जाता है। जैसे कि सूर्य सप्तमी, पुत्र सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, रथ सप्तमी और आरोग्य सप्तमी इन सभी नामों के पीछे भगवान सूर्य की ही पूजा होती है।वर्ष 2023 में यह पूजा अर्थात सूर्य सप्तमी जिसे हम भानु सप्तमी के नाम से जानते हैं, माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्य सप्तमी रविवार 7 फरवरी 2023 में यह व्रत धारण किया जाएगा। पौराणिक शास्त्रों में सूर्य देव को आरोग्य सेतु बताया है। अर्थात शारीरिक स्वास्थ्य का मुख्य स्रोत सूर्य देव की है। इनकी पूजा अर्चना करना हर मानव का धर्म है। अगर प्रत्येक मानव अपना धर्म निभाते हैं तो उन्हें सूर्य देव की कृपा से कभी भी रोग उत्पन्न नहीं होंगे।
आइए जानते हैं भानु सप्तमी क्यों मनाया जाती है? अर्थात मनुष्य में व्रत रखने की क्या विधि है? और किस तरह से भानु सप्तमी की पूजा अर्चना की जाती है? संपूर्ण प्रश्नों के उत्तर जानने हेतु आप नीचे दिए गए विवरण को ध्यान पूर्वक पढ़ते रहिए।
भानु सप्तमी का महत्व
धार्मिक पौराणिक शास्त्रों व मान्यताओं के अनुसार रविवार के दिन आ रही सप्तमी ही भानु सप्तमी कहलाती है। इस दिन भगवान सूर्य पहली बार सात घोड़ो के रथ पर सवार हो कर प्रकट हुए थे। रविवार का दिन भगवान सूर्य देव का माना जाता हैं और इस दिन को अति श्रेष्ठ मानते हुए सूर्य देव की पूजा आराधना की जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ के महीने में जब भानु सप्तमी होती हैं, उसे अचला भानु सप्तमी कहा जाता हैं। इसलिए आप भगवान सूर्य के किसी भी नाम की पूजा अर्चना कर सकते हैं। सूर्य देव संपूर्ण सृष्टि को अपना प्रकाश देते हैं। इसी के चलते सृष्टि अपने दैनिक क्रिया चक्कर में लीन रहती है। सूर्य देव की ऊर्जा से ही संपूर्ण सृष्टि का नवअंकुर उत्पन्न होता है। सूर्य देव उर्जा के सबसे बड़े स्त्रोत हैं। इनकी पूजा अर्चना से सौभाग्य मिलता हैं। रविवार के दिन सूर्य को अर्ध्य देने का महत्व अधिक होता हैं। मानव जाति के अस्तित्व के लिए सूर्य का बहुत बड़ा योगदान हैं।
सूर्य ग्रह सभी नव ग्रहों से श्रेष्ठ हैं और सबसे बड़ा होने के कारण सूर्य देव अर्थात सूर्य ग्रह है संपूर्ण ग्रहों का राजा कहलाता है। सूर्यदेव की किरने जब धरती पर पड़ती है तब ही भानु सप्तमी के दिन सूर्य की पूजा की जाती है। तथा सूर्य को जल अर्पित किया जाता है।
भानु सप्तमी कब और कैसे मनाई जाती हैं ?
सूर्य देव सभी ग्रहों में राजा होने के साथ-साथ सृष्टि का पालन करता भी है। जब तक सूर्य का प्रकाश धरती पर नहीं गिरता तब तक प्राकृतिक अपना सौंदर्य नहीं दिखा सकती। इसीलिए भगवान सूर्य की पूजा अर्चना करना मानव जाति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। भानु सप्तमी के दिन यह सभी क्रियाये की जाती है। माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्य सप्तमी के रूप में मनाया जाएगा। भानु सप्तमी पर सूर्य को जल चढ़ाने से बुद्धि का विकास होता है, और मानसिक शांति मिलती है। वह व्यक्ति कभी भी अंधा ,दरिद्र, दुखी नहीं रहता। इस दिन सूर्य को जल चढ़ाने वाले श्रद्धालु सूर्य देव की विशेष कृपा के पात्र बनते हैं। तथा उन्हें कभी भी शारीरिक कष्ट नहीं होता। जिन पर मंगल या आदि ग्रहों की कुदृष्टि होती है वह भी सूर्य देव के प्रताप से नष्ट हो जाती है। प्राणी ग्रहों के दोष से मुक्त हो जाता है।
भानु सप्तमी व्रत व पूजा विधि
श्रद्धालुगण भानु सप्तमी के दिन व्रत भी धारण करते हैं और व्रत धारण करने के लिए कुछ विशेष विधियां नीचे दी जा रही है। साथ ही सूर्य देव की पूजा विधि भी इसी में सम्मिलित की गई है। आप नीचे दिए गए विवरण को ध्यानपूर्वक पढ़ें और सूर्य सप्तमी का व्रत धारण करें।
व्रत धारण करने वाले उपासक सर्वप्रथम सूर्य उदय होने से पहले अर्थात ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शारीरिक स्वच्छ होने चाहिए।
तत्पश्चात तांबे के लोटे में शुद्धजल भर लें। उसके साथ ही लोटे में लाल चंदन, लाल फूल, चावल और कुछ गेहूं के दाने भी डाल लें।
- सूर्य उदय होते ही पहली किरण के साथ ही जल अभिषेक करें।
- और सूर्य देव को मन में स्मरण करते हुए प्रणाम करें।
- उपासकों के लिए यदि संभव हो तो आदित्य हृदय स्तोत्र का भी पाठ करें।
- सूर्य देव के सामने हाथ जोड़कर दिनभर निराहार रहकर व्रत का संकल्प धारण करें।
- जल ग्रहण करते समय तांबे के पात्र का इस्तेमाल करें।
- सूर्य को अर्घ्य देने के बाद श्रद्धानुसार भोजन, वस्त्र या कोई भी उपयोगी वस्तु दान करें।
- इस दिन अगर गायों को हरा चारा डाला जाता है तो विशेष फलों की प्राप्ति होती है।
- व्रत का पारण करते समय ध्यान रहे भोजन में नमक आदि नमकीन पदार्थ नहीं होने चाहिए।
- भानु सप्तमी व्रत व पूजा करने से होने वाले फायदे
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भी सूर्य देव को जल अर्पित किया जाता है या पूजा अर्चना आदि किया जाता है तो प्राणी को किसी प्रकार का रोग द्वेष आदि नहीं सताते। भानु सप्तमी 2023 के दिन प्रत्येक व्यक्ति को जल अर्पित करने का संकल्प लेना चाहिए , ऐसा धर्म शास्त्र में वर्णित मिलता है। वर्तमान में यह सभी सत्यता के आधार पर आंकी जा सकती हैं। खास तौर पर सूर्य देव को सवेरे जल चढ़ाना सभी प्राणियों का कर्तव्य होना चाहिए। क्योंकि सूर्य देव की कृपा से ही हम अपने शरीर को प्रकृति के अनुरूप ढालने हेतु मजबूत बना पाते हैं।
आइए जानते हैं भानु सप्तमी अर्थात सूर्य देव को याद करने व्रत करने और पूजा करने से मनुष्य को किस प्रकार के फायदे हो सकते हैं।
- भगवान सूर्य की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति निरोगी होता है।
- सूर्य देव को रोज जल चढ़ाने से बुद्धि का विकास होता है तथा बुद्धि में तीव्रता उत्पन्न होती है और मन को शांति मिलती।
- सूर्य देव की पूजा अर्चना करने से स्मरण शक्ति का विकास होता है।
- भानु सप्तमी के दिन की गई पूजा का ब्राह्मण सेवा से भी अधिक फल प्राप्त होता है।
- इस दिन जातको द्वारा किए गए धर्म पुण्य के कार्य अतिशय श्रेष्ठ फलों के कारक होते हैं।
- गाय को हरा चारा खिलाना अति श्रेष्ठ बताया है।
- व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि कष्टों के निवारण हेतु सूर्य देव की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
- पूरे देव की पूजा अर्चना करने से ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं।
इंसान का शरीर पंचतत्व से मिलकर बना हुआ है। जिसमें सूर्य द्वारा ऊर्जा प्राप्त होने पर ही यह शरीर अपनी क्रिया को अंजाम दे सकता है। इसलिए इंसान की ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्यदेव ही है।
शारीरिक कष्ट होने पर सूर्य देव की कृपा से ही दूर किए जा सकते हैं।
अब आप जानिए सूर्य मंत्र
जब भी उपासक सूर्य देव की पूजा अर्चना आदि करते हैं उस समय सूर्य देव को जल अर्पित करने के साथ ही अगर दिए गए मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो उन्हें मन में शांति प्राप्त होने के साथ-साथ कष्टों को निवारण हेतु शक्ति प्राप्त होती है।
- ॐ मित्राय नम:, ॐ रवये नम:,
- “ॐ सूर्याय नम:. ॐ भानवे नम:”
- ॐ खगाय नम:, ॐ पूष्णे नम:,
- “ॐ हिरन्यायगर्भाय नम:, ॐ मरीचे नम:”
- ॐ सवित्रे नम:,ॐ आर्काया नम:,
- “ॐआदिनाथाय नम:, ॐ भास्कराय नम:”
- ॐ श्री सवितसूर्यनारायणा नम :..
सूर्य देव को जल चढ़ाने की विधि
जानिए भानु सप्तमी 2023 कैसे मनाये , अक्सर आपने सुना होगा या पढ़ा होगा कि सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिए। परंतु सूर्य देव को कब और कैसे जल अर्पित करना चाहिए यह शायद काफी लोगों को ज्ञात नहीं है। इसी कारण उन्हें उचित फलों की प्राप्ति नहीं होती है। आइए जानते हैं सूर्य देव को किस तरह से जल चढ़ाना चाहिए तथा जल चढ़ाने की विधि क्या है।
अगर श्रद्धालुओं के लिए संभव हो तो नदी तालाब या नहर आदि में सूर्य उदय के समय स्नान करना चाहिए और पूर्व दिशा में सूर्य उदय होने पर सूर्य के प्रकाश की पहली किरण उस जल पर सीधी पढ़नी चाहिए। अर्थात बीच में कोई रुकावट नहीं होनी चाहिए। जैसे ही सूर्य की पहली किरण आपके बदन को छूती है तब आप तांबे के पात्र में कुछ आवश्यक सामग्री जैसे लाल चंदन, लाल फूल, चावल और कुछ गेहूं के दाने आदि डालकर रखें और जल भरकर सूर्यदेव को सीधे हाथ से जल अर्पित करें।
इस वक्त ध्यान रखें कि जब सूर्य को जल चढ़ाया जाता है तब आपकी नजरें सूर्य की तरफ होनी चाहिए और पात्र से गिर रहे जल सूर्य के और आपकी नजरों के बीच में होना चाहिए। इससे अति श्रेष्ठ लाभ होता है। इसी क्रियाविधि करने से आपके मस्तिष्क को तुरंत ऊर्जा प्राप्त होती है और मन को शांति मिलती है।
सूर्य को जल चढ़ाते समय आप संभव हो तो ऊपर दिए गए मंत्रों का जाप जरूर करें और गायत्री मंत्र का जाप करना अति से श्रेष्ट बताया गया है।
दीप दान विशेष महत्व रखता है इसके अतिरिक्त कपूर, धूप, लाल पुष्प इत्यादि से भगवान सूर्य का पूजन करना चाहिए। इस दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों तथा ब्राह्मणों को दान दे सकते हैं।
स्नान करते समय अपने सिर पर बदर वृक्ष और अर्क पौधे की सात-सात पत्तियाँ रखकर स्नान करे। स्नान करने के पश्चात सात प्रकार के फलों, चावल, तिल, दूर्वा, चंदन आदि को जल में मिलाकर उगते हुए भगवान सूर्य को जल देना श्रेष्ठ होता हैं।