astrocare
domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init
action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in C:\inetpub\vhosts\astroupdate.com\httpdocs\wp-includes\functions.php on line 6114हिंदू धर्म में प्रत्येक शुभ कार्य से पहले भद्रा की समय अवधि के बारे में जाना जाता है, उसके बाद ही निर्णय लिया जाता है कि कार्य को करना या स्थगित करना है। इसलिए सभी जातक किसी भी कार्य को करने या वस्तु को खरीदने से पहले ज्योतिष शास्त्र के विद्वान द्वारा मुहूर्त जानते हैं। इस भद्रा के समय को ही ध्यान में रखकर मुहूर्त का समय निर्धारित किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भद्राकाल किसी उत्सव या पर्व के समय होता है तो उस समय उस पर्व से संबंधित कुछ शुभ कार्य भी नहीं किए जा सकते हैं। उस समय में भद्राकाल को ध्यान में रखकर ही सभी महत्वपूर्ण कार्य किए जाएंगे।
वैसे तो भद्रा के अर्थ का अनुमान इस शब्द के अर्थ से हो जाता है। वैसे तो भद्रा शब्द के कई अर्थ है लेकिन संस्कृत से संबंधित कुछ अर्थ हम आपको बता रहे हैं। इस शब्द का मतलब अनिष्टकर बात, बाधा, विघ्न, अपमानजनक बात और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भद्रा एक अशुभ योग होता है। इसी कारण पृथ्वी पर इस योग के समय यदि कोई शुभ कार्य किया जाए तो वह नष्ट हो जाता है। इस विष्टि भद्रा के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें कोई शुभ काम नहीं जाता है। भद्रा का अर्थ पुराणों में भी देखने को मिलता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भद्रा को समझा जाए तो पक्ष में आने वाली तिथि में उसके भाग द्वारा इसका पता लगाया जाता है। संक्षेप में बात करें तो प्रत्येक तिथि के दो भागों को अलग अलग नाम से जाना जाता है। पक्ष के आधार पर तिथि का वह पहला या दूसरा भाग जिसमें शुभ कार्य करना निषेध माना जाता है, उसे भद्रा या भद्राकाल कहा जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन श्रावण माह की पूर्णिमा और होलिका दहन फाल्गुन माह की पूर्णिमा को आता है। इसी कारण से इन पर्वाें के समय भद्रा के समयकाल को ध्यान में रखते हुए इस पर विचार किया जाता है। इस भद्रकाल के लंबे होने पर मुहूर्त के समय पर प्रभाव पड़ता है और कई बार कुछ शुभ कार्याें को नहीं किया जाता।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भद्रा सूर्य पत्नी माता छाया से जन्मी थी और शनि देव की बहन थी। जिसे ब्रह्मा ने सातवें करण के रूप में स्थित रहने के लिए कहा था।
दिन के दो भागों के अनुसार भाद्र नीचे दिए गए समय पर लगती है
भद्रा का सीधा संबंध सूर्य और शनि से होता है। भद्रा के समय की अवधि 7 घंटे से 13 घंटे 20 मिनट तक की मानी जाता है। लेकिन विशेष समय पर नक्षत्र व तिथि अनुक्रम या पंचक के आधार पर यह अवधि कम या ज्यादा भी हो सकती है। भद्रा पृथ्वी लोक के साथ साथ पाताल और स्वर्ग लोक तक अपना प्रभाव डालती है। मुहुर्त्त चिंतामणि के आधार पर कहा जाता है कि भद्रा का वास चंद्रमा की स्थिति के साथ बदलता रहता है। राशियों के अनुसार चंद्रमा की स्थिति से भद्रा के होने की गणना ही जाती है। जब चंद्रमा सिंह, कुंभ, कर्क या मीन राशि में उपस्थित होता है तो भद्रा पृथ्वी लोक पर अपना प्रभाव डालती है। चंद्रमा की इस स्थिति के कारण ही भद्रा लगती है।
भद्रा को बारह अन्य नामों से भी जाना जाता है। यदि किसी कारणवश आपको भद्रा के समय में कोई शुभ कार्य करना अत्यंत आवश्यक हो अर्थात उसको स्थगित करना संभव न हो पाए तो जातकों को उस दिन उपवास रखना चाहिए।
1.दधि मुखी
2.भद्रा
3.महामारी
4.कालरात्रि
5.खरानना
6.विष्टिकरण
7.महारुद्रा
8.असुरक्षयकारी
9.भैरवी
10.महाकाली
11.कुलपुत्रिका
12.धान्या
भद्रा में मंगल कार्य को करना वर्जित माना गया है। मांगलिक कार्यों के उदाहरण कुछ इस प्रकार से हैं, मुण्डन, गृहारंभ, गृह-प्रवेश, संस्कार, विवाह संस्कार, रक्षाबंधन, नए व्यवसाय की शुरुआत, रक्षाबंधन आदि। कोई भी मांगलिक कार्य को करने से पहले मुहूर्त को जानने का यह तात्पर्य है कि उस समय भद्रा न हो। मुहूर्त में भद्रा के उपरांत भी कई प्रकार की गणनाएं की जाती है और ग्रहों की अवस्था, नक्षत्र, पक्ष और योग आदि को देखा जाता है, लेकिन सर्वप्रथम भद्रा के समय को ही देखा जाता है।
कश्यप ऋषि ने भद्रा का समय अनिष्टकारी प्रभाव वाला बताया है। वहीं कहा जाता है इस समय किए गए शुभ कार्याें का भी अशुभ प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है। यदि कोई ऐसी परिस्थिति बनी हो जिसमें भद्रा में शुभ कार्य करने पड़े तो उस दिन उपवास रखें।
अन्य जानकारी