बटेश्वर मेला और इसके रोचक किस्से | Bateshwar Mela

बटेश्वर मेलाBateshwar Mela

 

तो आइये दोस्तों आज हम बात करेंगे उत्तर प्रदेश के बटेश्वर के मेले के बारे में। वैसे तो यहाँ हर साल अनेको प्रकार के मेले लगते ही रहते है। परन्तु बटेश्वर का मेला सबसे उच्च स्थान पर आता है। बटेश्वर मेला धार्मिक एवं सांस्कृतिक गठजोड़ का बहुत बड़ा उदाहरण माना जाता है। उत्तर प्रदेश के आगरा से केवल 70 किलोमीटर दूर यमुना नदी के तट पर है बटेश्वर। बटेश्वर महादेव एवं 108 मंदिरो के होने के वजह से इसका नाम बटेश्वर गांव रखा गया । इस गांव में आने के बाद यमुना नदी उल्टी दिशा में बहना शुरू हो जाती है। प्रत्येक वर्ष यहां पर पशु मेला भी लगता है। ये तो सिर्फ कहने को ही पशु मेला होता है। परन्तु यहां के मेले की रौनक के आगे बाकी सभी बड़े बड़े मेलो की रंगत भी फीकी हो जाती हैं। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में लगने वाले इस मेले में लाखो की संख्या में लोग दूर दूर से यहाँ आते हैं। और पवित्र यमुना नदी में स्नान करते है और फिर मंदिरों में पूजा-अर्चना भी करते हैं। इस दिन यहाँ पर भगवान शिव शंकर की ही पूजा की जाती है।

 

मेला – Mela 

 

बटेश्वर मेला – बटेश्वर मेले का इतिहास अनेको साल पुराना है। हमारे देश को आज़ादी मिलने के बाद से स्थानीय सरकारें इस मेले का आयोजन करवाने लग गई। इस मेले में मुख्य तौर पर  पशुओ को खरीदा और बेचा जाता हैं। घोड़ा, हाथी, बैल, बकरी ये सब पशु खरीदे एवं बेचे जाते हैं। पशुओं के अतिरिक्त यहां पर फर्नीचर, हैंडिक्राफ्ट, कपड़े भी कई प्रकार का सामान भी इस मेले में बेचा जाता हैं। इसके अलावा इस मेले खाने पीना की बहुत ही उत्तम व्यवस्था भी की जाती है। 

 

मेले के पीछे का रोचक किस्सा – Mele Ke Peechhe Ka Rochak Kissa

 

बटेश्वर मेला – एक समय की बात है राजा बदन सिंह ने अकबर को यहाँ बटेश्वर के बीहड़ों में आकर शिकार पर आने का निमंत्रण दिया। राजा ने अकबर से ये झुंट बोल दिया था की आप को यहाँ आने के लिए यमुना नदी को पार करने की जरुरत नहीं पड़ेगी। इसके बाद राजा को अपनी इस ग़लती का एहसास भी हुआ। क्योंकि वहां पर आने के लिये यमुना नदी को पार करना बहुत जरुरी था। राजा को बाद में बहुत ही ज्यादा चिंता हो गई। राजा को ऐसा महसूस हुआ कि अब वो अकबर के नज़र में झूठे करार कर दिये जाएंगे। राजा ने फिर अपने मंत्री से इस बारे में बात कि और फिर ये फैसला किया कि यमुना की बहती धारा को बदल दी जाए।और फिर मिट्टी को डालकर वहा एक बांध का निर्माण गया एवं यमुना नदी की दिशा को ही बदल दिया। यमुना के तेज बहते हुए पानी को संभालने के लिये बांध को पक्का बना दिया गया था। और फिर इस पर सौ से भी अधिक पक्के मंदिरो का निर्माण करवा दिया गया था। ये मंदिर आज भी वहीं पर स्तिथ हैं।

तीन हफ्ते तक लगातार चलता है बटेश्वर मेला

 

बटेश्वर मेला लगातार तीन हफ्तो तक चलता है। शुरुआत के दो हफ्तों तक तो केवल पशुओं का ही मेला लगता है। जिसमें केवल बैल, ऊंट, हाथी, घोड़े आदि बेचे जाते है और खरीदे भी जाते हैं। तीसरे हफ्ते में कपड़ा, हस्तशिल्प आदि के सामान बेचे जाते हैं। और खरीदे जाते है। बस इतना ही नहीं इस मेले में कई प्रकार के रंगारंग कार्यक्रमो का भी आयोजन भी किया जाता है। 

 

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