जानिए शीतला माता मेला चाकसू के बारे में – Sheetla Mata Mela Chaksu
आइये दोस्तों आज हम बात करेंगे राजस्थान के जयपुर जिले के चाकसू में स्तिथ शीतला माता एवं शीतला माता मेला के बारे में और जानेंगे इस मंदिर के इतिहास के बारे में और इस माता की मान्यता के बारे में।
शीतला माता मेला – शीतला माता का लक्खी मेला 2 दिन तक लगता है यहाँ पर दूर-दूर से भक्त दर्शन करने के लिए और माता को भोग लगाने के लिए यहाँ पर आते है। यह मेला होली के पर्व के सात दिन बाद चैत्र की सप्तमी को शुरू होता है और अगले दिन अष्टमी तक चलता है। सप्तमी के दिन यहाँ हर घर में रंदा पुआ बनाया जाता है जिसे राजस्थानी भाषा में बास्योड़ा भी कहते है। फिर अष्टमी के दिन माता के ठन्डे पकवानो का भोग लगाया जाता है। माता के इस लख्खी मेले में हजारो की संख्या में लोग दर्शन के लिए आते है।
शीतला माता मेला – माता के ठन्डे पकवानो का भोग लगाने के बाद उसे प्रसाद के रूप में स्वयं सेवन करते है। ऐसा माना जाता है की डंडे भोजन को खाने से माता प्रसन्न होती है और अपने भक्तो को आशीर्वाद देती है।
शीतला माता की खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में जितने भी देवी देवता है उनमे से केवल यही एकमात्र देवी है जिसकी खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है।
मंदिर का निर्माण किसने करवाया था ? | Shitla mata ke mandir ka nirman kisne karwaya tha ?
शीतला माता मेला – इस मंदिर में लगे हुए पुराने शिलालेखों के अनुसार राजस्थान के जयपुर जिले के चाकसू कस्बे में स्तिथ शील डूंगरी पर बना माता का मंदिर बहुत पुराना है। ऐसा बताया जाता है कि इस शीतला माता के मंदिर का निर्माण जयपुर जिले के महाराजा माधो सिंह ने ही करवाया था। इस मंदिर में मौजूद शिलालेखों के अनुसार मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना माना जाता है। इन शिलालेख में अंकित प्रमाणों के अनुसार तत्कालीन जयपुर के महाराजा माधोसिंह के पुत्र गंगासिंह एवं गोपाल सिंह को चेचक नामक रोग हो गया था। फिर इस मंदिर में माता ही पूजा-अर्चना की गई थी और माता को भोग लगाया गया तब वे चेचक रोग से मुक्त हुए थे।
शीतला माता मेला – माता के इस चमत्कार के बाद राजा माधोसिंह ने चाकसू की पड़ाड़ी पर माता के मंदिर एवं बरामदे का निर्माण कराया भी था। इस मंदिर में माता शीतला की मूर्ति स्थापित है। यहां की खास बात ये भी है कि इस मेले के समय पर यहाँ पर कई समाज के लोगों की यहां पर पंचायतें भी लगती हैं। और यहां पर आपसी मतभेद को भुलाया जाता है और सब मिलजुल कर रहते है और कोई अनन्य विवाद भी अगर होता तो उसे भी सुलझाए जाता हैं।
पहला भोग राजपरिवार ही लगाता है – Pahala Bhog Raaj Parivaar Hee Lagaata Hai
शीतला माता मेला – शीतला माता के मंदिर का निर्माण राजपरिवार की ओर से करवाया था। इसीलिए इस मंदिर के निर्माण के बाद उनका यहां गहरा लगाव रहता है। तो इसी मान्यता से अभी भी शीतलाष्टमी पर माता को सर्वप्रथम जयपुर राजघराने की ओर से ही भोग लगाया जाता है। इसके बाद यहाँ पर आए हुए श्रद्धालु अपने घरों से लाए गए बासी (ठन्डे) पकवानों का भोग लगाते है। फिर माता के दरबार में जल का छिड़काव भी किया जाता है।
हिन्दू धर्म में इस माता का बहुत महत्व बताया गया है , सम्पूर्ण भारत में इस दिन शांति का माहौल रहता है अवं भाईचारे के साथ इस पर्व को मनाया जाता है , इस दिन छोटे बचो को माता का आशार्वाद जरूर प्रदान करवाना चाहिए क्यों की माता के आशीर्वाद से बचे सदैव स्वस्थ रहते है
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