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ओणम त्यौहार कब है 2023 ,क्यों और कैसे मनाते है | Onam
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ओणम त्यौहार कब है 2023 ,क्यों और कैसे मनाते है | Onam Festival 2023
January 25, 2023

ओणम त्यौहार कब है 2023 ,क्यों और कैसे मनाते है | Onam Festival 2023

ओणम त्यौहार 2023

इस वर्ष 2023 में ओणम का पर्व 20 अगस्त, रविवार से 31 अगस्त, गुरुवार तक मनाया जायेगा।ओणम त्यौहार सबसे ज्यादा केरल राज्य में मनाया जाता है। यह त्यौहार भी प्रमुख हिंदू पर्वों में से एक है। और मलायलम पंचांग के अनुसार यह पर्व चिंगम माह तथा हिंदी पंचांग के अनुसार श्रावण शुक्ल की त्रयोदशी को में आता है, और ग्रागेरियन कैलेंडर के अनुसार यह अगस्त- सितम्बर के माह में पड़ता है।

ओणम त्यौहार राजा महाबली के याद में मनाया जाता है। और इसी दिन को लेकर ऐसी कथा प्रचलित होती है कि ओणम के दिन राजा बलि की आत्मा केरल में आती है। इस पर्व पर पूरे केरल राज्य में सार्वजनिक अवकाश होता है।और कई प्रकार के सांस्कृतिक तथा मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित किये जाते है।ओणम त्यौहार को मंदिर में नहीं है बल्कि घर पर बनाया जाता है।और यह त्यौहार अगस्त से सितंबर के बीच में मनाया जाता है। यह त्यौहार हिंदू सभ्यता के सबसे उच्च स्तर के देव माने जाने वाले भगवान विष्णु जी के अवतार वामन को समर्पित है।यह त्यौहार किसानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।इसे लोकप्रिय रूप से फसल का त्यौहार भी कहा जाता है। ओणम त्यौहार 10 दिनों तक चलता है ,इस त्यौहार का अंतिम दिन बेहद खास होता है, जिसे थिरुवोणम कहते हैं। और इसे थिरुवोणम के दिन तक बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। 

ओणम त्यौहार क्यों  मनाते है 

ओणम त्यौहार मलयाली लोगों के प्रमुख पर्वों में से एक पर्व है। और इस पर्व को देश विदेश में रहने वाले, लगभग सभी मलयाली लोगों द्वारा इस त्यौहार को बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। वैसे तो पूनम का सबसे भव्य आयोजन केरल में ही होता है।लेकिन इस पर्व को कई अन्य राज्यों में भी काफी धूमधाम से मनाया जाता है।यदि सामान्य रूप से देखा जाए तो ओणम का पर्व खेतो में नई फसल की उपज के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा इस त्यौहार की एक विशेषता यह भी बताई गई है कि इस दिन लोग मंदिरो में नहीं बल्कि अपने घरो में ही पूजा-पाठ करते है। हालांकि इस पर्व के साथ एक पौराणिक कथा भी जुडी हुई है। जिसके अनुसार मलयाली लोग इस पर्व को बहुत सम्मान देते है। 

इस पर्व की ऐसी मान्यता मानी जाती है कि जिस राजा महाबली से भगवान विष्णु जी ने  वामन अवतार लेकर अपने तीन कदम में ही तीनो लोको को नाप  लिया था। वह असुरराज राजा महाबली केरल के राजा थे। और ओणम का यह पर्व उन्हीं को ही समर्पित है। और इसकी ऐसी मान्यता है की इस त्यौहार में तीन दिनों के लिए राजा महाबली पाताललोक से पृथ्वी पर आते है।और अपनी प्रजा के लिए नई फसल के साथ उमंग तथा खुशियाँ लाते है। यही कारण है इस त्यौहार पर लोग अपने अपने घरो के आँगन में राजा बलि की मिट्टी की मूर्ति बी बनाते है। 

ओणम त्यौहार कैसे  मनाते है 

मलयाली लोगों के द्वारा ओणम के पर्व को काफी धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। केरल में लोग इस पर्व की तैयारी दस दिन पहले से ही शुरु कर देते हैं। इस दौरान लोगों के द्वारा अपने घरो को साफ सुथरा किया जाता है।ओणम का पर्व बनाने वाले लोग इस दिन अपने घरों के आंगन में फूलों की पंखुड़ियों से सुंदर रंगोलियां बनाते हैं। और अपनी भाषा में इन रंगोलियों को ‘पूकलम’ कहा जाता है।साथ ही लोग अपने घरों में राजा महाबली की मूर्ति भी स्थापित करते हैं। लोगों का मानना है कि ओणम के त्यौहार के दौरान राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने पाताल लोक से पृथ्वी पर वापस आते हैं।राजा बलि की यह मूर्ति पूकलम के बीच में भगवान विष्णु के वामन अवतार कि मूर्ति के साथ स्थापित कि जाती है।   

आठ दिनों तक फूलों की सजावट का कार्य चलता रहता है। और नौवें दिन भगवान विष्णु जी मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं विष्णु जी की पूजा करते हुए इसके चारों तरफ नाचते-गाते हुए तालियां बजाती है।और रात को गणेश जी और श्रावण देवता की मूर्ति बनाई जाती है। इसके बाद सभी बच्चे वामन अवतार को एक समर्पित गीत गाते हैं। मूर्तियों के सामने दीपक जलाए जाते हैं और पूजा-पाठ के पश्चात दसवें दिन मूर्तियों को विसर्जित कर दिया जाता है।  

पूजा-पाठ के साथ ही ओणम का पर्व अपने व्यंजनो के लिए भी काफी प्रसीद है। इसी पर्व के दौरान घरो में विभिन्न प्रकार के व्यंजक बनाये जाते है।यही कारण है की बच्चे इस पर्व को लेकर सबसे ज्यादा उत्साहित रहते है। सामान्यत: इस दिन पचड़ी-पचड़ी काल्लम, दाव, घी, ओल्लम, सांभर आदि जैसे व्यंजन बनाये जाते हैं। और इन्हे केलो के पत्तो पर परोसा जाता है।ओणम पर बनने वाले पाक व्यंजन नम्बूदरी ब्राह्मणों के खाने की  विविधता को दर्शाते हैं।जो कि उनकी संस्कृति को प्रदर्शित करने का कार्य करता है।अनेकों स्थानों पर इस दिन दुग्ध से बने हुए अठारह तरह के पकवान परोसे जाते हैं। 

इस दिन उत्सव मनाने की साथ ही लोगो के मनोरंजन के लिए नृत्य,कुम्मत्तीकली (मुखौटा नृत्य) , पुलीकली नृत्य आदि जैसे नृत्यों का आयोजन किया जाता है। इसी कइ साथ ही इस दिन नौका दौड़ तथा विभिन्न प्रकार के खेलो का भी आयोजन किया जाता है। 

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