चेटी चंड सिंधी समुदाय के लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। इस पर्व को झूले लाल जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। जिसमें सिंधि समाज अपने ईष्ट देवता झूले लाल के लिए जन्मोत्सव का बहुत बड़े स्तर पर आयोजन करते हैं। चेटी चंड को भारत के साथ साथ पाकिस्तान के सिंध प्रांत में भी मनाया जाता है। इस पर्व के दिन झूलेलाल मंदिर और सिंधी समाज धर्मशाला में किया गया आयोजन देखने लायक होता है। जिसमें भारी संख्या में भक्त इकट्ठा होते हैं।
चेटी चंड वार्षिक आवृत्ति वाला पर्व है। सिंधी नई साल भी इसी पर्व का एक अन्य नाम है। यह पर्व सिंधी लोगों द्वारा नववर्ष के रूप में मनाया जाता है, इसलिए इसे सिंधी नई साल के नाम से संबोधित किया जाता है। इस दिन भक्त वरुण देवता का पूजन करते हैं। इनके पूजन से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। चेटी चंड ने मात्र त्योहार न होकर सिंधु सभ्यता के प्रतीक के रूप में अपनी पहचान बना ली है। आज के समय में इसे पूरे भारतवर्ष में जाना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार झूलेलाल जयंती को चैत्र माह में आने वाले शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। यह दिवस नवरात्रि के दूसरे दिन आता है। वर्तमान समय में प्रयोग किए जाने वाले कैलेंडर के अनुसार इसे मार्च या अप्रैल के माह में मनाया जाता है। यह प्रत्येक वर्ष मनाए जाने वाला पर्व है।
झूलेलाल जयंती सिंधी समाज में उनके आराध्य देवता श्री झूलेलाल महाराज के अवतरण दिवस के रूप में मनाए जाने वाला दिन है। इस पर्व को व्रत किए जाते है और बड़े स्तर पर मेलों का आयोजन किया जाता है। झूलेलाल जयंती सिंधी समुदाय में एक जन्मोत्सव है। जिसमें वह वरुण देव का पूजन करते हैं क्योंकि श्री झूलेलाल महाराज जी को सिंधी लोग जल देवता का अवतार मानते हैं।
वर्ष 2023 में यह त्योहार 22 मार्च को बुधवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन की जाने वाली पूजा के लिए द्वितीया तिथि के मुहूर्त को जानना बहुत आवश्यक है। साल 2023 में द्वितीया तिथि का मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहेगा।
इस साल 21 मार्च को मंगलवार की रात 10 बजकर 52 मिनट पर द्वितीया तिथि आरंभ हो जाएगी और अगले दिन बुधवार दोपहर 08 बजकर 20 मिनट पर इस तिथि का समापन हो जाएगा।
सिंधी समुदाय के इस पवित्र जयंती के जुड़ी कई कहानियां सुनने को मिलती हैं लेकिन सबसे लोकप्रिय कहानी के अनुसार प्राचीन समय में एक मिरखशाह नाम का राजा हुआ करता था। यह राजा ठट्ठा नाम के नगर पर राज करता था। मिरखाशाह एक बहुत ही अत्याचारी राजा था और हिंदू धर्म के लोगों को यह बहुत ही परेशान करता था। पूरी प्रजा राजा के इस व्यवहार से बहुत दुखी थी।
यह राजा हिंदुओं को धर्म परिवर्तन के लिए विवश करता था और बार बार इसी प्रयास में लगा रहता था। एक बार उसने सभी हिंदुओं को एक सप्ताह का समय दिया। राजा के दबाव के कारण लोग उस समय कुछ विरोध नहीं कर पाए। राजा के इस अत्याचार से परेशान हो कर अधिकतर लोग बिना कुछ खाए पिए सिंधु नदी के किनारे की ओर चल दिए। इस नदी के किनारे पहुंच कर सभी ने उपवास रखते हुए वरुण देवता का पूजन आरंभ कर दिया। सभी लोग पूरी आस्था के साथ वरुण देव की उपासना करते रहे।
अपने भक्तों की इस श्रद्धा को देखकर वरुण देव बहुत ही प्रसन्न हुए और वह मछली के ऊपर एक दिव्य पुरूष के रूप में प्रकट हुए। तभी उन्होंने भक्तों को निश्चिन्त होकर वापिस जाने कहा और बताया मैं 40 दिनों के बाद नसरपुर में अपने भक्त के घर जन्म लूंगा। जिसके बाद आप सभी राजा के अत्याचारों से मुक्त हो जाएंगे।
पूरे चालीस दिनों के पश्चात वरुण देव ने अपने दिए गए वचन के अनुसार नसरपुर में रतन राय की पत्नी माता देवकी जी के गर्भ से जन्म लिया। मान्यताओं के अनुसार इस जन्म के दिन चैत्र मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया का समय था। वरुण देव के इस अवतार ने सभी गांव वालों को राजा के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई। तभी से इस दिन को चेटीचंड के रूप में मनाया जाने लगा।
चेटी चंड का त्यौहार सिंधी समुदाय के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे नव वर्ष के साथ साथ श्री झूलेलाल जी के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। वहीं दूसरी ओर चेटी चंड को नवरात्रि के एक दिन बाद मनाते हैं, जिससे कि इसकी महत्ता और भी अधिक हो जाती है। सिंधी समुदाय में झूलेलाल महाराज जी को कई नामों से जाना जाता है जैसे कि दूलह लाल, वरुण देव, लाल साई, दरिया लाल, जिंदा पीर और उदेरो लाल। इस जयंती के दिन नामों का उच्चारण करना बहुत ही फलदायी माना जाता है क्योंकि यह नाम सिंधी लोगों के इष्ट देवता के ही अलग अलग नाम है।
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