आइये जानते है सूर्य भगवान के 12 नाम की महिमा। सूर्य देव को प्रातः सभी हिन्दू जल अर्पण करते है , इन्हे एक गृह और इस्वर दोनों के रूप में पूजा जाता है। जो भगवान पर आस्था रखता है या कहे की आस्तिक है वो सूर्य भगवन की पूजा जरूर करता है। अगर कहे की इस श्रष्टि को चलाने के पीछे सूर्य देव का आभार है तो कुछ गलत नहीं होगा। सूर्य देव की दो पत्निया है संज्ञा और छाया और जैसा की हम सब जानते है की संज्ञा से ताप्ती और छाया से यमुना नदी की उत्पति हुई है।
एक कथा के अनुसार भगवान सूर्य ने अपनी पत्नी संज्ञा को त्याग दिया था, क्यों की संज्ञा सूर्य देव के तेज और तप को सहन नहीं कर पाई थी। और इसी घटना के बाद संज्ञा के पिता सूर्येदेव की किरणों का तप कम किया था। इसी कारण से सूर्य की पत्नी संज्ञा प्रथवी पर एक अश्वनी (घोड़ी) के रूप निवास करने लगी और पत्नी को मानाने के लिए सूर्य देव ने भी अश्व (घोड़े) का रूप बनाकर प्रथवी पर रहने लगे। और इस दौरान उनके 2 पुत्रो की भी प्राप्ति हुई जिन्हे हम अश्विनी कुमार के नाम से जानते है।
सूर्य भगवन बहुत विकराल है इसी कारणवंश इन्होने अपने पुत्र न्याय के देवता शनि पर भी प्रहार किया था और जला दिया था। इसके पश्चात सूर्य पुत्र शनि ने तिल से सूर्य देव की आराधना की और फिर पुत्र पर एक पिता का प्रकोप समाप्त हुवा। जैसा की हम सब जानते है की प्राचीन काल में भगवान सूर्य देव के अनेको मन्दिर भारत में स्तापित थे। और इनमे से बहुत से मंदिर विश्व प्रशिद्ध है। हिन्दू धर्म में सूर्य भगवान के 12 नाम का बहुत महत्व है।
1- ॐ सूर्याय नम:।
2- ॐ मित्राय नम:।
3- ॐ रवये नम:।
4- ॐ भानवे नम:।
5- ॐ खगाय नम:।
6- ॐ पूष्णे नम:।
7- ॐ हिरण्यगर्भाय नम:।
8- ॐ मारीचाय नम:।
9- ॐ आदित्याय नम:।
10- ॐ सावित्रे नम:।
11- ॐ अर्काय नम:।
12- ॐ भास्कराय नम:।
सूर्य भगवान के 108 नाम संस्कृत में
सूर्योsर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्क: सविता रवि: ।
गभस्तिमानज: कालो मृत्युर्धाता प्रभाकर: ।।1।।
पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वयुश्च परायणम ।
सोमो बृहस्पति: शुक्रो बुधोsड़्गारक एव च ।।2।।
इन्द्रो विश्वस्वान दीप्तांशु: शुचि: शौरि: शनैश्चर: ।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वरुणो यम: ।।3।।
वैद्युतो जाठरश्चाग्निरैन्धनस्तेजसां पति: ।
धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदाड़्गो वेदवाहन: ।।4।।
कृतं तत्र द्वापरश्च कलि: सर्वमलाश्रय: ।
कला काष्ठा मुहूर्ताश्च क्षपा यामस्तया क्षण: ।।5।।
संवत्सरकरोsश्वत्थ: कालचक्रो विभावसु: ।
पुरुष: शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्त: सनातन: ।।6।।
कालाध्यक्ष: प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुद: ।
वरुण सागरोsशुश्च जीमूतो जीवनोsरिहा ।।7।।
भूताश्रयो भूतपति: सर्वलोकनमस्कृत: ।
स्रष्टा संवर्तको वह्रि सर्वलोकनमस्कृत: ।।8।।
अनन्त कपिलो भानु: कामद: सर्वतो मुख: ।
जयो विशालो वरद: सर्वधातुनिषेचिता ।।9।।
मन: सुपर्णो भूतादि: शीघ्रग: प्राणधारक: ।
धन्वन्तरिर्धूमकेतुरादिदेवोsअदिते: सुत: ।।10।।
द्वादशात्मारविन्दाक्ष: पिता माता पितामह: ।
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम ।।11।।
देहकर्ता प्रशान्तात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुख: ।
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा मैत्रेय करुणान्वित: ।।12।।
एतद वै कीर्तनीयस्य सूर्यस्यामिततेजस: ।
नामाष्टकशतकं चेदं प्रोक्तमेतत स्वयंभुवा ।।13।।