Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the astrocare domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in C:\inetpub\vhosts\astroupdate.com\httpdocs\wp-includes\functions.php on line 6114
ग्रह अस्त क्या है, कब होता है और उसके प्रभाव | Grah Asth
Loading...
Mon - Sun - 24 Hourse Available
info@astroupdate.com
ग्रह अस्त क्या होता है, कब होता है, उसके प्रभाव और मजबूत करने के उपाय | Grah Asth
February 6, 2023

ग्रह अस्त क्या होता है, कब होता है, उसके प्रभाव और मजबूत करने के उपाय | Grah Asth

जानिए ग्रह अस्त क्या होता है, कब होता है, इसके प्रभाव और उपाय

 

‘अस्त या अस्ता’ शब्द ग्रहों की गति से जुड़ा है। सूर्य सिद्धान्त के अलावा विभिन्न मतानुसार, ग्रहों की कई गतिविधियाँ हैं। जिनमें से एक ‘अस्ता’ गति भी है। “यदि कोई ग्रह सूर्य के समान अनुपात में है, तो इसे “अस्ता गति” कहा जाता है, जब तक कि सूर्य और उस ग्रह के बीच की दूरी का एक निश्चित अंश का फासला नहीं हो जाता। उस ग्रह को ‘अस्त’ कहा जाता है और जब कोई निश्चित होता है। अंशात्मक दूरी होने पर उस, ग्रह को ‘उदय’ या ‘उदित’ ग्रह कहा जाता है। इसलिए यह कमजोर होता है।

 

ग्रह अस्त क्या होता हैGrah Asth Kya Hota Hai

 

ज्योतिषि के लिए किसी भी जातक की जन्म कुंडली को देखते समय अस्त ग्रहों का विचार आवश्यक है। किसी भी कुंडली में पाये जाने वाले अस्त ग्रहों का अपना अलग ही महत्व होता है। अस्त ग्रहों को ध्यान में रखे बिना की गई कई भविष्यवाणियां गलत हो सकती हैं, इसलिए उन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। आइए जानते हैं कि ग्रह को अस्त कब कहा जाता है।

जब 9 ग्रहो में से कोई भी ग्रह नभमण्डल में सूर्य से एक निश्चित दूरी के अन्दर पड़ता है, तो ग्रह सूर्य के तेज के कारण अपनी शक्ति और तेज खोने लगता है। जिसके कारण यह नभमण्डल में दिखाई देना बंद हो जाता है और इस स्थिति में उस ग्रह को ‘अस्त’ होना कहते हैं।। प्रत्येक ग्रह की सूर्य से निकटता को डिग्री में मापा जाता है और इस मापदंड के अनुसार, प्रत्येक ग्रह को तब अस्त कहा जाता है जब वह सूर्य से निम्न दूरी के भीतर आता है।

 

ग्रह अस्त कब होता है – Grah Asth Kab Hota Hai

 

जब कोई ग्रह सूर्य के नजदीक आ जाता है तो ग्रह के आकर के कारण वह अदृश्य हो जाता है। सूर्य इस अस्त स्थिति का मुख्य कारण होता है। ग्रह अस्त हो जाने पर उसकी किरणें नही रहती। सूर्य से निम्न अंशो के भीतर ग्रह आ जायें तो वह अस्त हो जाता है। इसे हम ग्रह अस्त कहते है।  

ग्रहण होने वाला ग्रह अशुभ हो तो अशुभ फल देता है। उदय ग्रह अपने अनुरूप फल देता है। चंद्रमा सूर्य के 1 अंश के भीतर आ जाने से अमावस्या होती है। अमावस्या के समय चंद्रमा शक्तिहीन होता है एवं उसकी कोई किरण नहीं रहती है। राहु-केतु अस्त नही होते परंतु ये सूर्य के समीप हो तो सूर्य के प्रभाव व शक्ति में बाधा डालते हैं। इसी के कारण ग्रहण बनते हैं ।

 

ग्रह अस्त का प्रभाव – Asth Grah ka Prabhav 

 

किसी भी ग्रह के अस्त हो जाने की स्थिति में उसका बल कम हो जाता है और वह आसानी से फल नहीं दे पाता है। ग्रह फलहीन होते हैं और जैसे कि उनकी शक्ति उनसे छीन ली गई हो। किसी ग्रह के फलित होने पर वोह कितना अस्त है यह ज्ञान होना आवश्यक है। ग्रह जितना स्थिर होगा, फल देने में उतना ही निष्फल होगा। इसकी आकलन करके यह पता लगाया जा सकता है कि ग्रह का कितना प्रतिशत भाग अस्‍त है। इसके लिए, सूर्य से ग्रहो की दूरी को देखना आवश्यक है। तभी, उस ग्रह की कार्यक्षमता के बारे में सही ज्ञान होगा।

मान लीजिए कि चंद्रमा सूर्य से 12 डिग्री दूर होगा और यह 1 डिग्री दूर होने पर भी अस्त होगा, लेकिन पहली स्थिति में, कुंडली में चंद्रमा का बल दूसरी स्थिति से अधिक होगा क्योंकि जितना ही कोई ग्रह सूर्य के निकट आ जाता है, उतना ही उसकी शक्ति क्षीण हो जाती है। परिणाम के समय, कुंडली में अस्त ग्रहों का सावधानी के साथ अध्ययन किया जाना चाहिए। यदि अस्त होने वाला ग्रह सूर्य का मित्र है, तो वह कम नुकसान करेगा और अगर कोई दुश्मन है, तो वह अधिक नुकसान करेगा।

अस्त ग्रहों को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए अतिरिक्त बल की आवश्यकता होती है और यह कुंडली में  प्रकृति का अवलोकन करने के बाद ही होता है कि उस को अतिरिक्त बल कैसे प्रदान किया जा सकता है। कुंडली में पाये जाने वाले अस्त ग्रहों का अपना एक प्रभाव होता है।

 

 ग्रह अस्त के उपाय Grah Asth Ke Upaya

 

कुंडली में अस्त ग्रहों को अतिरिक्त ताकत देने के लिए, संबंधित ग्रह का रत्न शुभ परिणाम प्राप्त करने के लिए पहना जाता है, लेकिन यह भी ध्यान रखें कि गलती से भी  ग्रह अशुभ स्थिति में हो उसका रत्न नहीं पहनना चाहिए अन्यथा नकारात्मक परिणाम जीवन में दस्तक दे सकते हैं। रत्‍न का वज़न ग्रहो की बलहीनता का सही अनुमान लगाने के बाद ही निर्धारित किया जाता है। रत्‍न धारण से नवग्रह को अतिरिक्त बल मिल जाता है और वह अपना कार्य भलीभांति करता है। इसके बजाय अशुभ ग्रहों को शुभ बनाने के लिए मंत्रों का जाप करना चाहिए।

 

नवग्रहों के बीज मंत्र इस प्रकार हैं-

सूर्य मंत्र– ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:

चन्द्र ग्रह – ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्राय नम:

मंगल ग्रह – ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:

बुध ग्रह – ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:

गुरू ग्रह – ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:

शुक्र ग्रह – ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:

शनि ग्रह – ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:

राहु ग्रह – ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:

केतु ग्रह – ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:

अन्य जानकारी:-

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *